पृथ्वीराज रासो के आधार पर पृथ्वीराज चौहान का चरित्र चित्रण

प्रश्न-6 पृथ्वीराजयों में पृथ्वीराज के व्यक्तित्व पर विचार कीजिए।

उत्तर

पृथ्वीराज रासो के आधार पर पृथ्वीराज चौहान का चरित्र चित्रण : -

पृथ्वीराज रासो एक विशालतम महाकाव्य है। इस महाकाव्य का नायक 'पृथ्वीराज चौहान' है। सारा कथानक इनके इर्द-गिर्द घूमता है। उसके पिता का नाम सांभर नरेश सोमेश्वर है। कवि ने उसकी आयु केवल १६ वर्ष बताई है। जो दिल्ली तथा अजमेर का शासक है। फल का भोक्ता भी पृथ्वीराज ही है। शुक उसे पद्मावती के समक्ष इन्द्र का अवतार कहता है। उसका व्यक्तित्त्व आकर्षक और सुंदरता से परिपूर्ण है अर्थात वह कामदेव के समान सुन्दर और रूपवान है। शुक ने पृथ्वीराज को कामदेव का अवतार बताया है। शुक उसका परिचय देता हुआ कहता भी है कि उसके समान्य प्रभावी व्यक्तित्व का कोई है ही नहीं

'कामदेव अवतार हुअ सुअ सोमेसर नन्द । सास-किरन झलहल कमल, रति समीप वर बिन्द।।"

दिल्ली का एक वीर और प्रतापी राजा पृथ्वीराज के शौर्य तथा प्रेम भाव को व्यक्त करना महाकवि चंद बरदाई का उद्देश्य है पृथ्वीराज के चरित्र की विशेषताएँ इस प्रकार बताई जा सकती है।

1) कथा का नायक : 

पृथ्वीराज रासो का चरित नायक पृथ्वीराज चौहान है। रासो के आधार पर कहा जा सकता है कि सोलह वर्ष की अवस्था में ही पृथ्वीराज दिल्ली का शासक हो गया। पृथ्वीराज धीर प्रशांत कथानायक है। वीरता, साहस, निर्णय लेने की अक्षता दानी, शीलवान है।

2) आदर्श नायक 

कवि ने पृथ्वीराज को महाकाव्योचित नायक सिद्ध करने का प्रयास किया है। यही कारण है कि चन्दबरददाई ने उसके रूप-सौन्दर्य का अधिक वर्णन नहीं किया, बल्कि वह उसके शौर्य और साहस का अधिक वर्णन करता है। उसकी भुजाएं घुटनों तक लम्बी हैं तथा वह अचूक शब्द-भेदी बाण चलाने में निपुण है। वह बड़ा दानी, शीलवान् साहसी, दृढ़ प्रतिज्ञ तथा धैर्यवान् योद्धा है। उसने गजनी के बादशाह शहाबुद्दीन गौरी को युद्ध में तीन बार हराकर कैद किया और फिर अभयदान देकर छोड़ दिया। कितना प्रभावी स्वरूप है।

"वैसह बरीस षोड्स नरिन्दं, आजनु बाहु भुअलोक यंददं ।

+ + + 

जिहि पकरि साह साहाब लीन, तिहुं बेर करिल पानीप हीन। सिंगिनि सुसद्द गुने चढ़ि जंजीर, युक्के न सबद बेघन्त तीर ।। 

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बल बैन करन जिमि दान मानं, सत सहस सील हरिश्चन्द समान। साहस सुकम विकम जु वीर, दांनव सुमत अवतार धीर ।।

इस प्रकार हम कह सकते हैं कि पृथ्वीराज एक सर्वगुण सम्पन्न नायक है। यदि वह कामदेव के समान सुन्दर है तो वह वीर और प्रतापी भी है। नायक के इन्हीं गुणों को सुनकर पद्मावती उस पर आसक्त हो जाती है।


3) गुणवान व्यक्तित्व का धनी : 

पृथ्वीराज चौहान का शारीरिक व्यक्तित्त्व आकर्षक एवं सुंदर है। इसीके साथ-साथ साहस तथा ओज से परिपूर्ण है। गजनी के बादशाह शहाबुद्दीन गोरी को युद्ध में कई बार हराकर कैद कर लिया उसके शरण आनेपर शरणागत वत्सलता का गुण दिखाकर उसे छोड़ दिया। पृथ्वीराज की भुजाएँ घुटनों तक लंबी होने के कारण वह आजानुबाहु था। इतना युद्ध कौशल उसके पास था की शब्द सुनकर अचूक लक्ष्य भेद बाण से करता था।

सिंगिनि सुसद्द गुने चढि जंजीर चुक्के न सबद बेधन्ता तीर ।


3) वीर योद्धा राष्ट्र नायक : 

पृथ्वीराज रासो वीर रसप्रधान रचना होने के कारण 19 खण्डों में से लगभग 15 - खण्डों में युद्ध का विशद वर्णन हुआ है। इसमें जायसी के पद्मावत की तरह काल्पनिक अथवा परंपरागत युद्ध वर्णन नहीं किया गया है। प्रत्येक युद्ध में कुछ न कुछ नवीनता दिखाई देती है। युद्ध वर्णन में आलंकारिकता तथा अतिशयोक्ति का नामोनिशान नहीं है। यह वर्णन स्वाभाविक आँखों देखासा वर्णन है। उदाहरण प्रस्तुत है।

जयचंद की फौज को देखकर समस्त पृथ्वी तथा इंद्रादि देवता काँप रहे हैं, उसकी सेना का मुकाबला पृथ्वीराज के बिना कौन करे! क्यों न हो चंद कवि को पृथ्वीराज के अलावा संसार में तथा स्वर्ग में अधिक बलवान क्यों भला नजर आए। पृथ्वीराज की सेना के भार से पृथ्वी, समुद्र पर्वतापि सब डगमगा रहे है। पृथ्वराज के क्रोध को चंद ने इस प्रकार प्रकट किया है।

तब नरिंद जंगली कोह, कट्टयो सुबंक असि ।

××××××

हंकति सिर विकंध, नचित धर कबंध 11-64

इनमें दोहा 16, 17, 18 में पृथ्वीराज तथा शहाबुद्दीन की लडाई का सजीव वर्णन है। कई तरह के व्यूहों का निर्माण - यवन सेना का वर्णन - हाथी, घोड़ों की ठेल-पेल तथा राजपूतों की सेना तथा उनके शौर्य का वर्णन किया गया है। पृथ्वीराज की वीरता ऐसी है कि उसके रणकौशल को देखकर आकाश में चमकनेवाला सूर्य भी चकित होकर रूक जाता है। धरती भी घूमना बंद कर देती है। पृथ्वीराज न केवल शत्रू पर विजयी होता है अपितु उनका मान-भंग करता हुआ अपनी विजय पताका लहराता है। भारत का नाम विश्व में कर देता है।

इस प्रकार पृथ्वीराज एक दुर्द्धर्ष योद्धा भी है। युद्ध क्षेत्र में ही उसके दुर्द्धर्ष योद्धा होने के प्रमाण मिल जाते हैं। वह शत्रुओं पर आक्रमण करके उनके मान अभिमान को कुचल डालता है। जब युद्ध क्षेत्र में घमासान युद्ध होता है और धूल उड़ने से रात सा अंधेरा छा जाता है तब वह गौरी की गर्दन में अपना धनुष डालकर उसे कैद कर लेता है। वह इतना शौर्यवान् योद्धा है कि एक साथ सुद्रशिखर के राजा विजय और कुमायूं के राजा कुमोदमणि पर विजय प्राप्त कर गौरी पर भी विजय प्राप्त कर लेता है। कवि उसके असीम साहस का वर्णन करते हुए लिखता है कि

"गिरदं उड़ी भानं अंधार रैनं। 

गई सूधि, सुझझै नहीं मझझ नैनं ।। 

सिर नाय कम्मान प थराज राजं । 

पकरिये साहि जिम कुलिंग बाजं ।।"


4) निर्णय लेने में शीघ्रता : 

पृथ्वीराज के व्यक्तित्त्व का यह भी एक आयाम है। किसी भी निर्णय लेने में वह देर नहीं लगाता, समय व्यर्थ नहीं गँवाता। बिना आगा-पिछा सोचे पद्मावती का हाथ पकडकर उसे अपने घोडे की पीठ पर चढा लेता है और दिल्ली की ओर रवाना होता है। संयोगिता के साथ भी ऐसाही करता है। जयचंद के विरोध की पर्वाह नहीं करता।

पृथ्वीराज वीरता का तो साक्षात अवतार दिखाई देता है। युद्ध क्षेत्र में ही पाठक उसकी वीरता को जान पाता है। वह पद्मावती का हरण कर उसे अपने घोड़े पर बिठाकर दिल्ली की ओर जा रहा था। थोड़ी दूर जाने पर ही शत्रुओं के घुड़सवारों ने उसे चारों ओर से घेर लिया। यह देखकर पृथ्वीराज अपने घोड़े की लगाम मोड़कर पीछे चल पड़ा और उसने अपनी तलवार के वे जौहर दिखाए, उसे देखकर मानो सूर्य भी रुक सा गया। धरती कांपने लगी और शेषनाग बेचैन हो उठा। उसे शत्रुओं को पृथ्वीराज काल के समान दिखाई देने लगा। कवि लिखता भी है।

"उल्टी जु राज पथिराज बाग थकि सूर गगन धर धसत नाग।। सामन्त सूर सब काल रूप । गहि लोह बाह्रै सुभूप ।।"

इसी प्रकार से गौरी के साथ युद्ध करते समय भी प थ्वीराज का वीर रूप हमारे समक्ष उभर कर आता है। जब वह म्यान से अपनी तलवार को बाहर निकालता है तब ऐसा लगता है कि मानो काले बादलों में बिजली चमक गई हो। वह दुश्मन के हाथियों पर ऐसे टूट पड़ता है जैसे सिंह ने हाथियों पर हमला किया हो। उसकी वीरता का वर्णन करते हुए कवि लिखता है

"गही तेग चहुंवान हिन्दवांन रानं । गजं जूथ परि कोप केहरि समानं ।। करे रूंड मुंड करी कुम्भ फारे। वरं सूर सामन्त हुकि गर्ज भारे।।"


5) श्रृंगारी नायक पृथ्वीराज : 

कवि ने पृथ्वीराज को काम का अवतार माना है। पृथ्वीराज का व्यक्तित्त्व आकर्षक और सुंदर था। इंछिनी, पद्मीनी, संयोगिता पृथ्वीराज के रूपसौंदर्य पर आसक्त नायिकाएँ थी। संयोगिता का रूप-चित्रण कर कविने यह घोतित किया है कि उसके लिए योग्य पुरुष पृथ्वीराज ही है। कवि लिखता है, संयोगिता के घुंघराले केश मानों कामदेव के अंकुर है, उसके अधर कोमल, सुगंधित तथा अरुण किसलय की तरह है। ललाट पर मंजरी तिलक सुशोभित है। पृथ्वीराज संयोगिता के साथ विलास में इतना डूबे है कि उन्हें अपने राज्य की कोई सुध-बुध नहीं। राजपुरोहित, चंद कवि, सांबर नरेश इससे चिंतित हो गए।

रसघुटिय लुटिय मयन टुट्टी नतम जरिजाह।

भरभग्गत कच्छह सुमि अलि भरि मंजरियाह । 

चंद अपने स्वामी को सचेत करने के लिए अंतपुर में संदेश भेजता है।

गोरिय रत्तो तुव धरनि तुं गोरि अनुरत्त 

अर्थात् शहाबुद्दिन गोरी तुम्हारे राज्य पर अनुरक्त है और तुम गौरी (संयोगिता) के प्रेम में आसक्त हो। इतना सुनते ही पृथ्वीराज ने संयोगिता का खयाल छोडकर युद्ध की तैयारी शुरू कर दी।

इस तरह पृथ्वीराज चौहान केवल शृंगार में डूबे हुए नायक नहीं है तो राष्ट्र की रक्षा करनेवाले वीर योद्धा भी है। कुल मिलाकर कवि चंद ने 'पृथ्वीराज रासो' में पृथ्वीराज चौहान को वीर, गुणी, ज्ञानी, दानी, वचन के पक्के, शीलवान, सुपुरुष के रूप में चित्रित किया है। पंक्तियाँ प्रस्तुत है,

बल बैन करन जिम दान पान, सत सहस सील हरिचंद समान।

साहस सुक्रंम विक्रम जु, वीर, दानव सुमत्त, अवतार धीर ।

दिस च्यार जानि सब कला भूप, कंद्रप्प जानि अवतार रूप ॥


उदात्त सागर

इस खण्ड काव्य के अन्तिम भाग में प थ्वीराज का धीरोदात्त नायक रूप हमारे सामने उभर कर आता है। दिल्ली पहुंच कर वह विधिवत पद्मावती के साथ विवाह करता है और फिर याचकों को दान देकर उन्हें सम्मानित करता है। यही नहीं वह अपने शत्रु शहाबुद्दीन को केवल 8000 घोड़ों का दण्ड देकर मुक्त कर देता है। यह उसकी उदारता का ही परिचायक है। भले ही इतिहासकारों ने पथ्वीराज की निन्दा की है लेकिन प थ्वीराज ने प्राचीन भारतीय परम्परा का पालन करते हुए शहाबुद्दीन गौरी को प्राणदान देकर छोड़ दिया। इस सम्बन्ध में कवि लिखता भी है

"बोलि विप्र सीधे लगन्न, सुभ घरी परट्ठिय

हरि बांसह मंहर बनाय, करि थांवरि गंठिय ।।

ब्रह्म वेद उच्चरहिं होम चौरी जु प्रति वर पद्मावती दुलहिन अनूप, दुल्लह पथिराज नर।।"

इस प्रकार प थ्वीराज एक महान नायक है। जिसमें अपूर्व साहस, सौन्दर्य, दया, उदारता और देर दृष्टि है।

6) हार कर भी जीतनेवाला नायक : 

पृथ्वीराज रासो में नायक पृथ्वीराज गोरी की जेल में बंदी है। नेत्रविहीन करने जैसी क्रूर यंत्रणाएँ भोगी। अंत में शहाबुद्दीन गोरी का 'शब्द वेध' बाण से वध कर सुझ-बुझ का परिचय दिया। राष्ट्र को म्लेच्छ मुक्त किया ।

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