3.0 संधि ( स्वर संधि)
संधि की परिभाषा : - दो वर्णों ( स्वर या व्यंजन )
के मेल से होने वाले विकार को संधि कहते हैं।
इसे हम इस प्रकार भी कह सकते हैं कि संधि का सामान्य अर्थ है
मेल। इसमें दो अक्षर मिलने से तीसरे अक्षर की रचना होती है, इसी को संधि
कहते है। संधि निरथर्क अक्षरों को मिलकर सार्थक शब्द बनती है। संधि संस्कृत का
शब्द है। संधि में प्रायः शब्द का रूप छोटा हो जाता है।
संधि का विलोम संधि विच्छेद होता है। संधि पदों को मूल रूप में
पृथक कर देना संधि विच्छेद है।
जैसे - हिम + आलय = हिमालय
अति + अधिक = अत्यधिक ( यह संधि है ),
हिमालय = हिम + आलय = हिमालय
अत्यधिक = अति + अधिक ( यह संधि विच्छेद है )
संधि के भेद
वर्णों के आधार पर संधि के तीन भेद है-
(1) स्वर संधि
(2) व्यंजन संधि
(3) विसर्ग संधि
(1) स्वर संधि :- दो स्वरों के मेल से उत्पन्न होने वाले विकार
अथवा रूप-परिवर्तन को स्वर संधि कहते है।
जैसे- विद्या + अर्थी = विद्यार्थी ,
सूर्य + उदय = सूर्योदय ,
मुनि + इंद्र = मुनीन्द्र ,
कवि + ईश्वर = कवीश्वर ,
महा + ईश = महेश .
स्वर संधि के पाँच भेद होते है -
(i) दीर्घ संधि
(ii) गुण संधि
(iii) वृद्धि संधि
(iv) यर्ण संधि
(v) अयादी संधि
(i) दीर्घ स्वर संधि- यदि ह्स्व या दीर्घ
स्वर 'अ'',' 'आ', 'इ', 'ई',
'उ',
'ऊ'
और
'ऋ' के
बाद वे ही (स-वर्ण) ह्स्व या दीर्घ स्वर आये, तो
दोनों मिलकर क्रमशः दीर्घ 'आ', 'ई',
'ऊ',
'ऋ'
हो
जाते है।
सूत्र - अक: सवर्णे
दीर्घः
अर्थात् अक् प्रत्याहार के बाद उसका स-वर्ण आये तो दोनो मिलकर
दीर्घ बन जाते हैं।
नियम - दो स्वर वर्ण मिलकर दीर्घ हो जाते है। जैसे-
क) अ + अ = आ
धर्म + अर्थ = धर्मार्थ
अत्र + अभाव = अत्राभाव
कोण + अर्क = कोणार्क
ख) अ + आ = आ
शिव +आलय =शिवालय
हिम + आलय = हिमालय
भोजन +आलय =भोजनालय
पुस्तक + आलय = पुस्तकालय
ग) आ + अ = आ
विद्या + अर्थी = विद्यार्थी
लज्जा + अभाव = लज्जाभाव
घ) आ + आ = आ
विद्या + आलय =विद्यालय
विद्या + आलय = विद्यालय
महा + आशय =महाशय
च) इ + इ = ई
रवि + इंद्र = रवींद्र
गिरि + इन्द्र =गिरीन्द्र
मुनि + इंद्र = मुनींद्र
छ) इ + ई = ई
मुनि + ईश = मुनीश
गिरि + ईश =गिरीश
हरि + ईश = हरीश
ज) ई + इ = ई
नारी + इंदु = नारींदु
मही + इन्द्र =महीन्द्र
झ) ई + ई = ई
नदी + ईश = नदीश ;
मही + ईश = महीश .
पृथ्वी + ईश =पृथ्वीश
ट) उ + उ = ऊ
विधु + उदय = विधूदय
भानु + उदय = भानूदय
ठ) उ + ऊ = ऊ-
लघु + ऊर्मि = लघूर्मि ;
सिधु + ऊर्मि = सिंधूर्मि
ड) ऊ + उ = ऊ
वधू + उत्सव = वधूत्सव ;
स्वयम्भू + उदय = स्वयम्भूदय
वधू + उल्लेख = वधूल्लेख
ढ) ऊ + ऊ = ऊ
भू + ऊर्ध्व = भूर्ध्व ;
वधू + ऊर्जा = वधूर्जा
त) ऋ + ऋ = ऋ
पितृ + ऋण = पितृण
(ii) गुण स्वर संधिः - इसमें अ, आ के आगे इ, ई हो तो ए ;
उ, ऊ हो तो ओ तथा ऋ हो
तो अर् हो जाता है। इसे गुण-संधि कहते हैं। नियम -
पूर्व लग्न
|
अनु लग्न
|
संध्य
|
अ, आ
|
इ, ई
|
ए
|
उ, ऊ
|
ओ
|
|
ऋ
|
अर्
|
जैसे –
अ + इ = ए
|
देव + इन्द्र = देवन्द्र
|
नर + इंद्र
= नरेंद्र
|
अ + ई = ए
|
नर + ईश=
नरेश
|
देव + ईश = देवेश
|
आ + इ = ए
|
महा + इन्द्र = महेन्द्र
|
|
आ + ई = ए
|
महा + ईश =
महेश
|
|
अ + उ = ओ
|
ज्ञान +
उपदेश = ज्ञानोपदेश
|
चन्द्र + उदय = चन्द्रोदय
|
अ + ऊ = ओ
|
समुद्र + ऊर्मि = समुद्रोर्मि
|
जल + ऊर्मि
= जलोर्मि ;
|
आ + उ = ओ
|
महा + उत्स्व = महोत्स्व
|
|
आ + ऊ = ओ
|
गंगा + ऊर्मि = गंगोर्मि
|
|
अ + ऋ = अर्
|
देव + ऋषि = देवर्षि
|
|
आ + ऋ = अर्
|
महा + ऋषि = महर्षि
|
(iii) वृद्धि
स्वर संधि
यदि 'अ' या 'आ'
के
बाद 'ए'
या
'ऐ' आये,
तो
दोनों के स्थान में 'ऐ' तथा 'ओ' या 'औ'
आये,
तो
दोनों के स्थान में 'औ' हो जाता है। नियम -
पूर्व लग्न
|
अनु लग्न
|
संध्य
|
अ, आ
|
ए, ऐ
|
ऐ
|
अ, आ
|
ओ, औ
|
औ
|
जैसे-
अ + ए = ऐ
|
एक + एक = एकैक
|
|
अ + ऐ = ऐ
|
मत + ऐक्य = मतैक्य
|
नव + ऐश्र्वर्य = नवैश्र्वर्य
|
आ + ए = ऐ
|
सदा + एव = सदैव
|
|
आ + ए = ऐ
|
महा + ऐश्र्वर्य = महैश्र्वर्य
|
|
अ + ओ = औ
|
वन + ओषधि = वनौषधि
|
परम + ओजस्वी = परमौजस्वी
|
अ + औ = औ
|
परम + औषध = परमौषध
|
|
आ + ओ = औ
|
महा + ओजस्वी = महौजस्वी
|
|
आ + औ = औ
|
महा + औषध = महौषध
|
iv) यर्ण स्वर संधिः – यदि 'इ',
'ई',
'उ',
'ऊ'
और
'ऋ'के
बाद कोई भित्र स्वर आये, तो इ-ई का 'यू',
'उ-ऊ'
का
'व्'
और
'ऋ'
का
'र्'
हो
जाता हैं। नियम-
पूर्व लग्न
|
अनु लग्न
|
संध्य
|
इ
|
अ
|
य
|
आ
|
या
|
|
उ
|
यु
|
|
ऊ
|
यू
|
|
उ
|
अ
|
व
|
आ
|
वा
|
|
ओ
|
वो
|
|
औ
|
वौ
|
|
ऋ
|
आ
|
त्रा
|
जैसे-
इ + अ = य
|
यदि + अपि = यद्यपि
|
|
इ + आ = या
|
इति + आदि = इत्यादि।
|
अति + आवश्यक = अत्यावश्यक
|
इ + उ = यु
|
अति + उत्तम = अत्युत्तम
|
|
इ + ऊ = यू
|
अति +उष्म =अत्यूष्म
|
|
उ + अ = व
|
अनु + अय = अन्वय
|
|
उ + ए = वे
|
अनु + एषण = अन्वेषण
|
|
उ + आ = वा
|
सु + आगत = स्वागत
|
मधु + आलय = मध्वालय
|
उ + ओ = वो
|
गुरु + ओदन = गुवौंदन
|
|
उ + औ = वौ
|
गुरु + औदार्य = गुवौंदार्य
|
|
ऋ + आ = त्रा
|
पितृ + आज्ञा = पित्राज्ञा
|
पितृ + आदेश = पित्रादेश
|
(v) अयादि स्वर संधिः - यदि 'ए',
'ऐ'
'ओ',
'औ'
के
बाद कोई भिन्न स्वर आए, तो (क) 'ए' का 'अय्',
(ख
) 'ऐ'
का
'आय्',
(ग)
'ओ'
का
'अव्'
और
(घ) 'औ'
का
'आव'
हो
जाता है।
नियम-
पूर्व लग्न
|
अनु लग्न
|
संध्य
|
ए + अ
|
अय् +
अ
|
|
ऐ + अ
|
आय् +
अ
|
|
ओ + अ
|
अव् +
अ
|
|
औ + अ
|
आव् +
अ
|
|
औ + इ
|
आव् +
इ
|
जैसे-
ए + अ
= अय् + अ
|
ने +
अन = नयन
|
चे +अन =चयन
|
ऐ + अ
= आय् + अ
|
गै +
अक = गायक
|
नै + अक =नायक
|
ओ + अ
= अव् + अ
|
पो +
अन = पवन
|
|
औ + अ
= आव् + अ
|
पौ +
अक = पावक
|
|
औ + इ
= आव् + इ
|
नौ +
इक = नाविक
|
|
श्रो + अन = श्रवन
|
||
श्रौ +अन = श्रावण
|
विशेष सारणी
संधि की सारणी
आरम्भिक -->
↓ अन्तिम |
अ
|
ा
|
ि
|
ी
|
ु
|
ू
|
ृ
|
े
|
ै
|
ो
|
ौ
|
अ
|
ा
|
ा
|
े
|
े
|
ो
|
ो
|
अर्
|
ै
|
ै
|
ो
|
ौ
|
ा
|
ा
|
ा
|
े
|
े
|
ो
|
ो
|
अर्
|
ै
|
ै
|
ौ
|
ौ
|
ि
|
य
|
या
|
ी
|
ी
|
यु
|
यू
|
यृ
|
ये
|
यौ
|
यो
|
यौ
|
ी
|
य
|
या
|
ी
|
ी
|
यु
|
यू
|
यृ
|
ये
|
यौ
|
यो
|
यौ
|
ु
|
व
|
वा
|
वि
|
वी
|
ू
|
ू
|
वृ
|
वे
|
वै
|
वो
|
वौ
|
ू
|
व
|
वा
|
वि
|
वी
|
ू
|
ू
|
वृ
|
वे
|
वै
|
वो
|
वौ
|
ृ
|
र
|
रा
|
रि
|
री
|
रु
|
रू
|
ॠ
|
रे
|
रै
|
रो
|
रौ
|
े
|
े
|
अया
|
अयि
|
अयी
|
अयु
|
अयू
|
अयृ
|
अये
|
अयै
|
अयो
|
अयौ
|
ै
|
आय
|
आया
|
आयि
|
आयी
|
आयु
|
आयू
|
आयृ
|
आये
|
आयै
|
आयो
|
आयौ
|
ो
|
ो
|
अवा
|
अवि
|
अवी
|
अवु
|
अवू
|
अवृ
|
अवे
|
अवै
|
अवो
|
अवौ
|
ौ
|
आव
|
आवा
|
आवि
|
आवी
|
आवु
|
आवू
|
आवृ
|
आवे
|
आवै
|
आवो
|
आवौ
|
ी
|
य
|
या
|
ी
|
ी
|
यु
|
यू
|
यृ
|
ये
|
यौ
|
यो
|
यौ
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