कालरिज के काव्य भाषा संबंधी विचारों की समीक्षा कीजिए।

कालरिज की काव्य संबंधी धारणा का एक प्रमुख आधार इनके पूर्वर्ती लाक, हार्टली आदि दार्शनिक हैं जिन्होंने यांत्रिकतावादी सिद्धांत का प्रतिपादन किया। 

यांत्रिकता वादी सिद्धांत खंडों के प्रयोग से एक पूर्ण रचना सिद्ध करने को प्रतिपादित करता है। जैसे कार का निर्माण विभिन्न प्रकार के अन्य यंत्रों के द्वारा ही चलायमान कार का निर्माण संभव हो पाता है। जिसमें बिना चेतना के भी कार्य करने की क्षमता होती है। ठीक इसी प्रकार मानव मन यांत्रिक रूप में संवेदना को ग्रहण और संचित कर स्मृति तथा बिंबो के योग से काव्य रचना में समर्थ हो पाता है।

 कालरिज ने प्रत्यय वादी सिद्धांत का खंडन कर यांत्रिकता की चेतना की सत्ता को स्वीकार किया। उनके अनुसार मनुष्य के प्रत्येक अंग को पहले ही गढ लिया जाए और बाद में उन्हें कार की तरह जोड़कर मनुष्य बना दिया जाए। मनुष्य के अंग और चेतना का विकास एक साथी होता है जिसमें काव्य की सृष्टि इसी मनुष्य रूपी ढांचे में होती है।

उनके अनुसार भाव शब्द अर्थ दिन अलंकार छंद आदि अलग-अलग से नहीं जुड़ते बल्कि इनके सभी के स्वभाव से ही काव्य की उत्पत्ति होती है ऐसा कभी नहीं होता कि पहले शब्द और अर्थ जोड़कर कविता बना ले बाद में इस पर रस छंद अलंकार आदि से इसका श्रंगार कर दे।

कालरिज के अनुसार काव्य की उत्पत्ति भाव की तीव्रता से होती है जिसमें संवेदना भी शामिल होती है। इस संवेदना में भावों को ग्रहण करने की अनुभूति होती है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि कालरेज अनुभूति, संवेदना और भाव की त्रयी कला युक्त काव्य के जनक हैं।

कलाकार के मन में किन्ही अज्ञात कारणों से जो भाव उद्वेलित होते हैं वह अभिव्यक्ति का मार्ग ढूंढते हैं और यही भाव अंतर्निहित कलात्मकता के रूप में सामने आते हैं। कालरिज के अनुसार कला में सौंदर्य अपने आप आता है उसमें सिर्फ शिवत्व खोजना व्यर्थ है सौंदर्य भावना अंते प्रज्ञ होती है तथा उसका काम आनंद प्रदान करना है कहने का तात्पर्य यह है कि कलाकृति का मूल्य उसके कलात्मकता में ही है उससे बाहर नहीं।

कालरिज के अनुसार कविता रचना का वह प्रकार है जो कृतियों से इस अर्थ में भिन्न है कि उसका तात्कालिक प्रायोजन आनंद है सत्य नहीं और रचना के अन्य प्रकारों से उसका अंतर यह है कि संपूर्ण से वह आनंद प्राप्त होना चाहिए जो उसके प्रत्येक घटक खंड अर्थात अवयवों से प्राप्त संतुष्टि से होता है।

कार रेस कहते हैं की कवि काव्य की सृष्टि नहीं करता वह स्वयं काव्य बन जाता है ऐसी स्थिति में कवि की अनुभूति के साथ पाठक पूर्णतया तादम में बिठा सकें यह संभव नहीं है।

कालरिज कहते हैं की भाषा में इतनी शक्ति नहीं कि वह कवि की अनुभूति को यथावत अभिव्यक्त कर सकें। क्योंकि कवि पाठक और संप्रेषण तीनों ही अनुभूति के तादम में में बाधक साबित होते हैं।

काव्य की शैली पर कॉल रजनी अध्ययन किया और 2 सूत्र तैयार की प्रथम सूत्र के अनुसार वही का वित्त कविता वास्तविक शक्ति से संपन्न और अनिवार्य काव्य की संज्ञा से अभिहित होने की योग्य है जिसे पढ़ने भर से ही हमें अधिकतम आनंद प्राप्त होता है और हम उसे पुनः पढ़ना चाहते हैं।
दूसरा यह जो पंक्तियां अर्थ शाय चार्य और भाव की सार्थकता के बिना कोई कमी लाए उसे दूसरे शब्दों सेअनूदित किया जा सके अर्थात शब्द चैन की दृष्टि से सदोष हो।

उनका सीधा से मतलब है कि उत्तम काव्य वही है जो कभी पुराना नहीं पड़ता और जिसे पाठक बार बार पढ़ना चाहते हैं।

काव्य में वैसे शब्दों का प्रयोग सदोष मानना चाहिए जिन्हें अर्थ में परिवर्तन किए बिना परिवर्तित किया जा सकता है।


कालरिज ने भाषा के संबंध में बड़ी अच्छी बात कही है *भाषा मानव मन का शस्त्रागार है जिसमें उसके अतीत की विजय स्मारक और भावी विजय के शस्त्र एक साथ रहते हैं।*
दूसरे शब्दों में हम कह सकते हैं कि अतीत के प्रयोगों के आधार पर भाषाओं की भंगिमा ओ चंदा ओ चंदा ओ आदि के ज्ञान के आधार पर प्रयोक्ता भावी भाषा को समृद्ध कर यश का भागी बन सकता है।

कालरिज की काव्य भाषा संबंधी मान्यता का एक प्रमुख आधार वर्ड्सवर्थ की काव्य भाषा की आलोचना है उन्होंने अपनी पुस्तक बायोग्राफिया लिटरेरिया के 4 अध्यायों में वर्ड्सवर्थ की हर मान्यता का खंडन किया है।
कालरिज की भाषा संबंधी मान्यता इनकी इसआलोचना से समझ आते हैं। 

कॉलरिज ग्रामीण भाषा की एक समस्या मानते हैं क्योंकि उसकी शब्दावली अपर्याप्त और कामचलाऊ है परंतु उससे व्यापक सूक्ष्म अनुभूतियां दे पानी असंभव है । ग्रामीण भाषा सीमित वस्तु एवं कार्यों का ही वर्णन करने में संभव है कॉलेज मानते हैं कि प्रकृति के अनंत रूप की अभिव्यक्ति ग्रामीण भाषा से ही संभव नहीं है।

कार रेस के अनुसार मनुष्य की वार्षिक भाषा का चयन ठीक नहीं है क्योंकि प्रत्येक मनुष्य की भाषा उसके ज्ञान के विस्तार क्षमता की क्रियाशीलता और संवेदनाओं की गंभीरता के अनुरूप भिन्न भिन्न हो सकती है। वे कहते हैं कि यह जरूर नहीं किए भाषा वास्तविक नहीं हो यह भाषा वास्तविक भी हो सकती है ।

वे आगे चलकर कहते हैं कि भाषा तीन कारणों से नियंत्रित होती है प्रथम कारण उसकी व्यक्ति विशेषता दूसरा कारण समाज या वर्ग की विशेषता तीसरा कारण शब्दों तथा मुहावरों की अंतर्निहित विशेषताएं।

वे कहते हैं कि ग्रामीण भाषा के यह दो को यदि के दोषों को दूर कर के काम में लाया जाएगा तो यह भाषा में अरुचि उत्पन्न करने वाले होंगे यदि हमने भाषा से दोषों को ही दूर कर दिया तो वह ग्रामीण भाषा कहां रही। उनके अनुसार ग्रामीण भाषा तभी तक ग्रामीण है जब तक उसका परिष्कार नहीं हुआ है । क्षेत्रीयता व ग्राम्यता आदि दोषों को दूर करने के बाद वह काव्य भाषा बन जाती है तो उसे ग्रामीण कहना ठीक नहीं है।

कालरिज छंद को मानसिक संतुलन की उत्पत्ति मानते हैं उनका कहना है कि भाव के उद्वेलन को नियंत्रण में रखने के लिए मानसिक संतुलन जरूरी है उसी से चंद की उत्पत्ति होती है इसी कारण वह वर्ड्सवर्थ के छंद की अनिवार्यता को खंडित करते हैं।

काव्य भाषा में कल्पित का धनंजय किस प्रकार आनंद की प्राप्ति होती है इसके बारे में कार रेस कहते हैं कि उपन्यास पढ़ना और देखना इतनी देर के लिए है जितनी देर वह मिथ्या को सत्य मानकर उसक आनंद उठाता है
 यही काव्य सकते हैं।

कॉलेज के अनुसार किसी विद्या का निर्धारण अनेक बातों जैसे रचनाकार की प्रकृति इच्छा रुचि शक्ति देश काल परिस्थिति काव्य वस्तु भव अनुभूति मानसिक संतुलन मानसिक ऊर्जा आदि से प्रेरित होता है इसलिए उसकी अभिव्यक्ति की पद्धति भी विशिष्ट होती है।
काव्य वस्तु छंद का भी निर्धारण कर सकती है जो वस्तु मुक्तक या प्रदीप की योग्य है उस पर महाकाव्य नहीं रची जा सकते जो छंद श्रंगार जय वीर रस की व्यंजना से उपयुक्त होगा वही करुणा की व्यंजना के लिए उपयुक्त नहीं होगा।




Post a Comment