Tulsidas ji ka Doha

मैंने अक्सर लोगों को कहते सुना है कि मैं आंखों ही आंखों में 'ताड' लेता हूं।
धीरे-धीरे पता चला कि 'ताड़ने' का अर्थ 'प्रताड़ना' तो कतई नहीं है। 
वास्तव में ताडने का अर्थ है 'किसी चीज के बारे में अधिक से अधिक जानकारी आ जाना या प्राप्त कर लेना कि उसे देखते ही उसके गुण और अवगुण समझ में आ जाए।'

वास्तव में ताड़ना का अर्थ यही है प्रताड़ना नहीं है जबकि प्रताड़ना का अर्थ है दंडित करना है जबकि 'ताड़ना' शब्द का एक अर्थ है  'जांचना' (अच्छे बुरे की पहचान करना) या ‘परखना’ (देख कर अच्छे बुरे की पहचान करना) या “भाँपना ” (अनुमान लगाकर अच्छे बुरे की पहचान करना)। यह तीनों ही एक दूसरे के पूरक हैं।

इसे एक उदाहरण से समझाइए जैसे कि वह उसकी नीयत को ताड़ गया था अर्थात वह समझ गया कि उसकी नियत में खराब है | 

जैसा कि मैंने सबसे पहले बताया कि लोग अक्सर कहा करते हैं कि मैं आंखों ही आंखों में लोगों को ताड़ लेता हूं। इसका मतलब है कि वे व्यक्तियों के गुणों अवगुणों को देखने मात्र में अच्छे से पहचान लेते हैं।

चलिए अब आते हैं असली प्रश्न पर रामचरित्र मानस घर-घर में पढ़ी जाती है इसी कारण गोस्वामी तुलसीदास को सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है।

लगभग साढ़े चार सौ साल बाद अब आकर कुछ लोगों को गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित हिंदू महाग्रंथ 'श्रीरामचरितमानस' की कुल 10902 चौपाईयों में से आज तक मात्र एक चौपाई पढ़ने में आ पाई है, जो उस समय लिखी गई जब हिंदी आज के जितनी परिष्कृत नहीं थी और अवधी भाषा नहीं बोली में लिखी गई। अवधी में आंचलिक भाषा में आज भी इस शब्द का प्रयोग बहुत आम  हैं |

भगवान श्री राम का मार्ग रोकने वाले समुद्र द्वारा भय वश किया गया अनुनय का अंश है। जो सुंदरकांड में 58 वें दोहे की छठी चौपाई है और इस प्रकार है–

"ढोल, गँवार, शूद्र, पशु नारी.! 
सकल ताड़ना के अधिकारी”

अब कुछ विद्वान कहते हैं कि इस चौपाई के शब्दों में हेरफेर है परंतु मैं ऐसा नहीं मानता क्योंकि मेरे पास गीता प्रेस गोरखपुर द्वारा प्रकाशित राम चरित्र मानस है। जिसमें यह चौपाई शब्दशः ऐसी ही लिखी हुई है। इसलिए मुझे नहीं लगता कि इस चौपाई में कहीं कोई गलती है क्योंकि इस प्रकाशन ने बहुत से धर्म ग्रंथों का प्रमाणिक  प्रकाशन किया है।

चलिए सारी बातों से दिमाग हटाते हैं और फिर से इस चौपाई पर अपना ध्यान केंद्रित करते हैं और इसका अर्थ जो सही मायनों में है वह निकालने का प्रयास करते हैं। मुझे आशा है कि आपको यह अर्थ सबसे ज्यादा सही और सटीक लगेगा।

"ढोल, गँवार, शूद्र, पशु नारी.! 
सकल ताड़ना के अधिकारी”

चौपाई में ढोल, गँवार, शूद्र, पशु तथा नारी इन पाँच को “अधिकारी” माना है | किस चीज के “सकल ताड़ना” का। शब्द सकल का अर्थ है ‘पूर्ण या सम्पूर्ण या अच्छी तरह से या कंप्लीटली या एब्सोल्यूटली’ | जबकि ताड़ना शब्द का अर्थ है 'जांचना' (अच्छे बुरे की पहचान करना) ‘परखना’ (देख कर अच्छे बुरे की पहचान करना) या “भाँपना ” (अनुमान लगाकर अच्छे बुरे की पहचान करना)।

चूँकि चौपाई में मामला भगवान राम से जुड़ा है इसलिए आध्यात्मिक सन्दर्भ में ताड़ना का अर्थ देखने परखने या भाँपने से ही है न कि दंडित करने से ।

फिर भी इस चौपाई का अर्थ समझने से पहले हमें इससे पूर्व और बाद की कुछ चौपाईयों के बारे में भी जानना होगा। जब श्री राम अनुनय विनय करते हुए 3 दिन बीत गए तब श्री राम ने समुद्र के घमण्ड को तोड़ने के लिए कहा कि “हे लक्ष्मण ! भय बिन प्रीति नाहीं, लाओ अग्निबाण से इसे अभी सुखा देता हूँ।

लछिमन बान सरासन आनू । 
सोषौं बारिधि बिसिख कृसानु।।
 सठ सन बिनय कुटिल प्रीति। 
सहज कृपन सन सुंदर नीति ।।
भावार्थ:- हे लक्ष्मण ! मेरे धनुष बाण लाओ मैं अभी इसी सागर को सुखाए देता हूं। हठी के साथ विनय, कुटी के साथ नीति

बिनय न मानत जलधि जड़ गए तीनि दिन बीति।
बोले राम सकोप तब भय बिनु होइ न प्रीति॥57॥
भावार्थ:-इधर तीन दिन बीत गए, किंतु जड़ समुद्र विनय नहीं मानता। तब श्री रामजी क्रोध मैं भरकर बोले- बिना भय के प्रीति नहीं होती!॥57॥

इतना कहकर उन्होंने तीर का अनुसंधान शुरू किया तो समुद्र समुद्र के जीव त्राहि-त्राहि करने लगे तब समुद्र ब्राह्मण भेष में हाथ जोड़कर विनती करते हुए भगवान राम के सम्मुख प्रस्तुत हुआ।

सभय सिंधु गहि पद प्रभु केरे। 
छमहु नाथ सब अवगुन मेरे॥।
गगन समीर अनल जल धरनी। 
इन्ह कइ नाथ सहज जड़ करनी॥1॥

भावार्थ:-समुद्र ने भयभीत होकर प्रभु के चरण पकड़कर लिए और बोला, " हे नाथ! आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी सब स्वभाव से ही जड़ है। हे नाथ ! मेरे सब अवगुणों को क्षमा कीजिए। 

तव प्रेरित मायाँ उपजाए। सृष्टि हेतु सब ग्रंथनि गाए॥
प्रभु आयसु जेहि कहँ जस अहई। सो तेहि भाँति रहें सुख लहई॥2॥
भावार्थ:- ग्रंथों में ऐसा वर्णन मिलता है कि आप की आज्ञा से ही सृष्टि ने इन जड़ तत्वों की सृष्टि की है।  जिसके लिए स्वामी की जैसी आज्ञा है, वह उसी मर्यादा (सीमा में रहने का गुण) में रहने में सुख पाता है॥2॥

प्रभु भल कीन्ह मोहि सिख दीन्हीं। मरजादा पुनि तुम्हरी कीन्हीं॥
ढोल गवाँर सूद्र पसु नारी। सकल ताड़ना के अधिकारी॥3॥
भावार्थ:- हे प्रभु ! आपने अच्छा किया जो मुझे सीख (ज्ञान) दी, किंतु मर्यादा (सीमा में रहने का गुण) भी आपकी ही बनाई हुई है। 
ढोल, गँवार, शूद्र, पशु और स्त्री- ये सब परखने के अधिकारी हैं॥3॥

[इसमें तुलसीदास जी ने 5 गुणों वाले पांच वर्गों का वर्णन किया है। जिनमें ढोल (निर्जीव), गवार (बिल्कुल ही सीधे साधे या कम सोच समझ वाले) शूद्र (सेवा करने वाले) पशु (चौपाए) और नारी (स]

सभय सिंधु गहि पद प्रभु केरे। छमहु नाथ सब अवगुन मेरे॥। 
गगन समीर अनल जल धरनी। इन्ह कइ नाथ सहज जड़ करनी॥1॥
प्रभु भल कीन्ह मोहि सिख दीन्हीं । मरजादा पुनि तुम्हरी कीन्हीं ॥ 
ढोल गवाँर शूद्र पसु नारी । सकल ताड़ना के अधिकारी॥ 2 ||

तब राम को पहचान कर समुद्र डर गया वह राम से विनम्र भाव में विनती करते हुए बोला, " हे प्रभु ! आकाश, पृथ्वी, अग्नि, जल एवं वायु सभी जड़ हैं। इनकी करनी भी जड़ है ( इस कारण मेरी करनी भी जड़ है क्योंकि समुद्र भी इन पाँचों तत्वों से बना हुआ है ) मेरे अवगुणों को क्षमा करें | फिर कहा - हे प्रभु ! आपने अच्छा किया जो मुझे सीख (फटकार) दी |... ढोल, गँवार, शूद्र, पशु तथा नारी को भी आपने परखने या भांपने (ताड़ने) का सकल अधिकार दे रखा है परन्तु जड़ होने का स्वभाव भी तो आप ही का दिया हुआ है ( इस कारण मैं आपको पहचान नहीं पाया ) | तात्पर्य ये है कि इन पाँच तक को किसी बात को ताड़ने का अधिकार है तो मुझे क्यों नहीं ? यहाँ एक बात उल्लेखनीय है समुद्र ब्राम्हण के रूप में श्री राम के सामने खड़ा है | ब्राम्हण ज्ञान का रूप होता है परन्तु कई बार ज्ञान की पराकाष्ठा से उत्पन्न जड़ता के कारण ज्ञानी भी साधारण सी बात को ताड़ नहीं सकता है |


❌ ~*ढोल,  गवार,  शूद्र,   पशु,   नारी.!*~❌
*आज तक गलत प्रचारित किया गया है*

 *सही शब्द हैं ✅👇🏿*
*ढोल, गवार, क्षुब्ध पशु, रारी.!”*
*श्रीरामचरितमानस मे, शूद्रों और नारी का अपमान कहीं भी नहीं किया गया है।*
*भारत के राजनैतिक शूद्रों* को पिछले 450 वर्षों में गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित हिंदू महाग्रंथ 'श्रीरामचरितमानस' की कुल 10902 चौपाईयों में से आज तक मात्र 1 ही चौपाई पढ़ने में आ पाई है, और वह है 

भगवान श्री राम का मार्ग रोकने वाले समुद्र द्वारा भय वश किया गया अनुनय का अंश है जो कि सुंदर कांड में 58 वें दोहे की छठी चौपाई है ..*

"ढोल, गँवार, शूद्र, पशु नारी.! 
सकल ताड़ना के अधिकारी”


प्रभु भल कीन्ह मोहि सिख दीन्हीं। 

मरजादा    पुनि   तुम्हरी   कीन्हीं॥ 

ढोल    गवाँर    शूद्र    पसु   नारी। 

सकल   ताड़ना   के   अधिकारी || 


तुलसीदास जी के अनुसार- ढोल, गँवार, शूद्र, पशु तथा नारी इन पाँच को भी किसी बात को परखने, भाँपने या जाँचने का अधिकार है | ये पाँच ही क्यों ? क्योंकि ये पाँचों इस बात की धारणा के अच्छे उदाहरण हैं कि इन्हें जैसा चाहो वैसा उपयोग कर लो | ये कुछ बोलेंगे या करेंगे नहीं | ढोल...जैसा बजाओ वैसा बज जाएगा, गँवार...जैसा समझाओ समझ जाएगा, शूद्र....यानि सेवक को तो बस स्वामी की आज्ञा का पालन करना है, पशु...बेचारा जिधर हाँको उधर हंक जाएगा....| अब बात नारी की तो, ‘समर्पण’ के नाम पर नारी का अपना अलग से कोई अस्तित्व नहीं माना जाता है... वह तो उपभोग्य है | बस ! यहीं पर तुलसीदास जी कहते हैं कि नहीं इन पाँचों को भी सकल यानि एब्सोल्यूट अधिकार है किसी को परखने का, देखने का, भांपने का या जाँचने का | अर्थात ये भी “सकल ताड़ना” के अधिकारी है | आपने जैसा कहा वैसा कर दिया जरूरी नहीं | मेरे लगाए अर्थ के मामले में निम्न दोनों चौपाइयों को सम्मिलित भाव में देखना होगा- सभय सिंधु गहि पद प्रभु केरे। छमहु नाथ सब अवगुन मेरे॥। गगन समीर अनल जल धरनी। इन्ह कइ नाथ सहज जड़ करनी॥1॥" प्रभु भल कीन्ह मोहि सिख दीन्हीं । मरजादा पुनि तुम्हरी कीन्हीं ॥ ढोल गवाँर शूद्र पसु नारी । सकल ताड़ना के अधिकारी॥“ ये बात भगवान राम के समक्ष समुद्र के द्वारा विनम्रता पूर्वक कही गई है... 


तब राम को पहचान (परखकर या ताड़ कर) समुद्र डर गया वह राम की शक्ति को जान विनम्र भाव से विनती कर बोला कि- हे प्रभु ! आकाश, पृथ्वी, अग्नि, जल एवं वायु सभी जड़ हैं इनकी करनी भी जड़ है ( इस कारण मेरी करनी भी जड़ है क्योंकि समुद्र भी इन पाँचों तत्वों से बना हुआ है ) मेरे अवगुणों को क्षमा करें | फिर कहा - हे प्रभु ! आपने अच्छा किया जो मुझे सीख (फटकार) दी |... ढोल, गँवार, शूद्र, पशु तथा नारी को भी आपने परखने या भांपने (ताड़ने) का सकल अधिकार दे रखा है परन्तु जड़ होने का स्वभाव भी तो आप ही का दिया हुआ है ( इस कारण मैं आपको पहचान नहीं पाया ) | तात्पर्य ये है कि इन पाँच तक को किसी बात को ताड़ने का अधिकार है तो मुझे क्यों नहीं ? यहाँ एक बात उल्लेखनीय है समुद्र ब्राम्हण के रूप में श्री राम के सामने खड़ा है | ब्राम्हण ज्ञान का रूप होता है परन्तु कई बार ज्ञान की पराकाष्ठा से उत्पन्न जड़ता के कारण ज्ञानी भी साधारण सी बात को ताड़ नहीं सकता है |

तुलसीदास जी ने चौपाई में लिखा है -- "ढ़ोल, गँवार, शूद्र, पशु, नारी सकल ताड़ना के अधिकारी..... |" फेसबुक पर किसी पोस्ट में इसके अर्थ निकाले जा रहे थे...| इस चौपाई में विवादित शब्द है 'ताड़ना' | इसे तारण शब्द के रूप में भी देखा गया है | खैर, ....मैं चौपाई को अलग अर्थ के सन्दर्भ में देखता हूँ - इस चौपाई में शब्द 'अधिकारी' को पकड़े रहिएगा | अधिकारी शब्द का प्रयोग किसी अच्छी एवं सकारात्मक बात के लिए ही किया जाता है | “यह व्यक्ति इनाम का अधिकारी है” इनाम पाना सकारात्मकता है जबकि “सजा” के सन्दर्भ में अधिकारी शब्द का प्रयोग गलत है क्योंकि सजा ‘पाने’ की नहीं, ‘देने’ की बात होती है | इसलिए उपर्यक्त चौपाई में अधिकारी शब्द का प्रयोग किसी अच्छी चीज़ को पाने के लिए ही हुआ है | अब सवाल दो बातों को लेकर है- पहला तुलसीदास जी ने किसे ‘अधिकारी’ माना है ? दूसरा किस बात के लिए अधिकारी हैं ? चौपाई में ढोल, गँवार, शूद्र, पशु तथा नारी इन पाँच को “अधिकारी” माना है | ये पाँचों “सकल ताड़ना” के अधिकारी हैं | शब्द सकल का अर्थ है ‘सम्पूर्ण या एब्सोल्यूट’ | ताड़ना शब्द का अर्थ वैसे ‘पिटाई’ से लिया जाता है परन्तु एक अर्थ और है ‘परखना’ या “भाँपना |”---“वह उसकी नीयत को ताड़ गया' अर्थात वह समझ गया कि उसकी नियत में खोट थी | चूँकि चौपाई में मामला भगवान राम से जुड़ा है इसलिए आध्यात्मिक सन्दर्भ में ताड़ना का अर्थ देखने- परखने या भाँपने से ही है न कि पिटाई या दुतकारने से | .... आइये अब इस निगाह से देखते हैं | 



इस चौपाई के अर्थ को इस सन्दर्भ में समुद्र के मनोभाव को समझते हुए देखना होगा न कि केवल शाब्दिक अर्थ में | इस अर्थ में मुझे तुलसीदास जी की बात दिखाई देती है क्योंकि वे भी उस समय की सामाजिक परिस्थितियों से आहत रहे होंगे | ये बात भी तथ्य परख है कि श्री रामचरितमानस की रचना का उद्देश्य ही हिन्दू समाज के उत्थान के लिए किया गया था | तुलसीदासजी ने जन सामान्य को समझ में आए ऐसी भाषा एवं शब्दावली में अपनी बात कह दी जिसे आगे चलकर गलत अर्थ में प्रचारित कर दिया | अतः एक नया अर्थ तथा संदर्भ तलाशने की मैंने कोशिश की है आशा है आप सब भी मेरी बात से सहमत होंगे | धन्यवाद | Priyadarshan Shastri

इस सन्दर्भ में चित्रकूट में मौजूद तुलसीदास धाम के पीठाधीश्वर और विकलांग विश्वविद्यालय के कुलाधिपति श्री राम भद्राचार्य जी जो नेत्रहीन होने के बावजूद संस्कृत, व्याकरण, सांख्य, न्याय, वेदांत, में 5 से अधिक GOLD Medal जीत चुकें हैं।

महाराज का कहना है कि बाजार में प्रचलित रामचरितमानस में 3 हजार से भी अधिक स्थानों पर अशुद्धियां हैं और..
*इस चौपाई को भी अशुद्ध तरीके से प्रचारित किया जा रहा है।*
उनका कथन है कि..
*तुलसी दास जी महाराज खलनायक नहीं थे,*
आप स्वयं विचार करें
*यदि तुलसीदास जी की मंशा सच में शूद्रों और नारी को प्रताड़ित करने की ही होती तो क्या रामचरित्र मानस की 10902 चौपाईयों में से वो मात्र 1 चौपाई में ही शूद्रों और नारी को प्रताड़ित करने की ऐसी बात क्यों करते ?*
यदि ऐसा ही होता तो..
*भील शबरी के जूठे बेर को भगवान द्वारा खाये जाने का वह चाहते तो लेखन न करते।यदि ऐसा होता तो केवट को गले लगाने का लेखन न करते।*
स्वामी जी के अनुसार..
*ये चौपाई सही रूप में -*
*ढोल,गवार, शूद्र,पशु,नारी नहीं है*
बल्कि यह *"ढोल,गवार,क्षुब्ध पशु,रारी” है।*
ढोल = बेसुरा ढोलक 
गवार = गवांर व्यक्ति 
क्षुब्ध पशु = आवारा पशु जो लोगो को कष्ट देते हैं 
रार = कलह करने वाले लोग
चौपाई का सही अर्थ है कि जिस तरह बेसुरा ढोलक, अनावश्यक ऊल जलूल बोलने वाला गवांर व्यक्ति, आवारा घूम कर लोगों की हानि पहुँचाने वाले..
*(अर्थात क्षुब्ध, दुखी करने वाले पशु और रार अर्थात कलह करने वाले लोग जिस तरह दण्ड के अधिकारी हैं.!*
 उसी तरह मैं भी तीन दिन से आपका मार्ग अवरुद्ध करने के कारण दण्ड दिये जाने योग्य हूँ।
स्वामी राम भद्राचार्य जी जो के अनुसार श्रीरामचरितमानस की मूल चौपाई इस तरह है और इसमें ‘क्षुब्ध' के स्थान पर 'शूद्र' कर दिया और 'रारी' के स्थान पर 'नारी' कर दिया गया है।
भ्रमवश या भारतीय समाज को तोड़ने के लिये जानबूझ कर गलत तरह से प्रकाशित किया जा रहा है।इसी उद्देश्य के लिये उन्होंने अपने स्वयं के द्वारा शुद्ध की गई अलग रामचरित मानस प्रकाशित कर दी है।रामभद्राचार्य कहते हैं धार्मिक ग्रंथो को आधार बनाकर गलत व्याख्या करके जो लोग हिन्दू समाज को तोड़ने का काम कर रहे है उन्हें सफल नहीं होने दिया जायेगा।
  आप सबसे से निवेदन है , इस लेख को अधिक से अधिक share करें।*
और
*तुलसीदास जी की चौपाई का सही अर्थ लोगो तक पहुंचायें हिन्दू समाज को टूटने से बचाएं।*
*विश्व का कल्याण हो*
    *जय श्रीराम*

गोस्वामी तुलसीदास रचित महान ग्रन्थ श्रीरामचरितमानस में वर्णित इस एक दोहे को लेकर बहुत प्रश्न उठाये जाते है। विशेषकर "शूद्र" एवं "नारी" शब्द को लेकर वामपंथियों और छद्म नारीवादियों ने इसे तुलसीदास और मानस के विरुद्ध एक शस्त्र बना रखा है। प्रश्न ये है कि क्या वास्तव में गोस्वामी तुलसीदास जैसा श्रेष्ठ व्यक्ति शूद्रों एवं नारियों के विषय में ऐसा लिख सकता है? आइये इसे समझते हैं।

एक कहावत है "अर्थ का अनर्थ", अर्थात किसी चीज को यदि ठीक ढंग से ना समझा जाये तो उसका गलत अर्थ निकल जाता है। ठीक ऐसा ही इस दोहे के साथ हुआ है। किन्तु इससे पहले कि हम इसके वास्तविक अर्थ पर आये, हमें पद्य की एक विधा के बारे में जानना आवश्यक है जिसे "बहुअर्थी छंद" कहते हैं। अर्थात ऐसी चीजें जिसके कई अर्थ हो सकते हैं। जैसे तुलसीदास जी ने मानस में ही "कनक" शब्द का उपयोग किया है जिसका अर्थ स्वर्ण भी होता है, गेंहू भी और धतूरा भी। अर्थात इस एक शब्द से उन्होंने तीन अर्थों को साध लिया है। जो श्रेष्ठ रचनाकार होते हैं वे ऐसे ही शब्दों का प्रयोग करते हैं ताकि रचना अनावश्यक बड़ी ना बनें।

हमारे हिन्दू धर्म के दो सबसे बड़े महाकाव्यों, रामायण और महाभारत में भी महर्षि वाल्मीकि और महर्षि वेदव्यास द्वारा बहुअर्थी संवाद उपयोग करने का वर्णन है। रामायण का तो आधार ही ऐसा श्लोक है जिसके दो अर्थ थे। महर्षि वाल्मीकि ने क्रौंच पक्षी को देख कर जो श्लोक दुखी होकर कहा, अंततः ब्रह्मा जी ने उसी का दूसरा अर्थ बताया और वही से उन्हें रामायण लिखने की प्रेरणा मिली।

उसी प्रकार जब गणेश जी ने वेदव्यास को बताया कि वो अपनी लेखनी नही रोकेंगे तब महर्षि वेदव्यास ने उनसे प्रार्थना की कि तब वे तभी लिखें जब वे उस श्लोक को पूरी तरह समझ लें। जब गणेशजी की गति बहुत तेज होती थी तब वेदव्यास ऐसे ही बहुअर्थी श्लोक रच देते थे जिससे गणेश जी को उसका सही अर्थ समझने में समय लग जाता था और उतनी देर में महर्षि अन्य श्लोकों की रचना कर लेते थे।

बहुअर्थी शब्दों का सही उपयोग करना हर किसी के बस की बात नहीं होती किन्तु तुलसीदास जी कितने श्रेष्ठ रचनाकार थे इसमें निःसंदेह रूप से किसी को कोई शंका नही होगी। उनके इस दोहे में "ताडन" शब्द भी बहुअर्थी है। अर्थात इस दोहे में ये शब्द तो एक बार आया है किंतु हर किसी के सन्दर्भ में इस शब्द का अर्थ अलग-अलग है। किन्तु हम अज्ञानी लोग ताडन का अर्थ हर किसी के विषय में "मारना" ही समझ लेते हैं जिससे अर्थ का अनर्थ हो जाता है। आज के आधुनिक युग में भी लोग कम से कम ये तो जानते ही होंगे कि ताडन शब्द का अर्थ केवल मारना नहीं होता, इसका एक अर्थ परीक्षा करना और निगरानी करना भी होता है। आइये प्रत्येक के विषय मे इस "ताडन" शब्द का सही अर्थ समझ लेते हैं:
  • ढोल: ढोल के विषय में ताडन शब्द का वास्तविक अर्थ मारना या पीटना ही है। ढोल को जब तक पीटा ना जाये, अर्थात जब तक उसपर थाप ना दी जाए, उसमें से ध्वनि नही निकल सकती और उसका कोई उपयोग नही होता। यही नहीं, उसकी ताड़ना भी संगीत सम्मत होनी चाहिए ताकि उसमें से ध्वनि लयबद्ध रूप से निकले अन्यथा उसका स्वर कर्कश हो जाता है। 
  • गंवार: गंवार का अर्थ अज्ञानी होता है और यहां ताड़ना का अर्थ है दृष्टि रखना। अज्ञानी को यदि कोई कार्य दिया जाए और उसपर दृष्टि ना रखी जाए तो वो कार्य कभी भी सही ढंग से नही हो सकता। इसीलिए जब तक किसी को किसी चीज के विषय मे पूर्ण ज्ञान ना हो तब तक उसपर दृष्टि रखनी चाहिए। ऐसा ना करने पर भारी हानि होने की सम्भावना होती है। 
  • शूद्र: सबसे अधिक आपत्ति इसी पर होती है किन्तु सर्वप्रथम तो ये समझ लें कि शुद्र जाति नही बल्कि वर्ण है। दोनों में बहुत अंतर है किन्तु आज कल लोग इन दोनों को एक ही समझ लेते हैं। इस पर एक विस्तृत लेख बाद में धर्म संसार पर प्रकाशित किया जायेगा। किन्तु यहाँ पर जो संवाद है वो शुद्र के वेद पाठन के विषय पर है और यहां ताडन का अर्थ मार्गदर्शन है। हिन्दू धर्म में ब्राह्मण वर्ण को विद्या, क्षत्रिय वर्ण को आयुध, वैश्य वर्ण को वाणिज्य एवं शूद्र वर्ण को भूमि का अधिकारी माना गया है। यदि कोई शूद्र वेद पाठ कर रहा हो तो वो किसी योग्य ब्राह्मण/गुरु के उचित मार्गदर्शन में ही होना चाहिए ताकि उसे सही ज्ञान मिल सके। गुरु के सही ताडन (मार्गदर्शन) के बिना वो गलत ज्ञान प्राप्त कर सकता है। यहाँ पर ये शूद्र वर्ण के लिए उपयोग किया गया है किन्तु अन्य दो वर्णों - क्षत्रिय एवं वैश्य पर भी ये बात लागू होती है कि उन्हें अपनी शिक्षा योग्य ब्राह्मण/गुरु से लेनी चाहिए। यही हिन्दू धर्म के गुरु-शिष्य परंपरा का वास्तविक मूल है।
  • पशु: पशुओं को हिन्दू धर्म में बहुत मूल्यवान माना गया है इसीलिए उन्हें "पशुधन" कहा जाता है। इनके विषय मे ताडन का अर्थ है देख-रेख करना। पशु बुद्धिहीन है किन्तु मूल्यवान है अतः उसे हर समय सही देख-रेख की आवश्यकता होती है। जब पशु झुंड में चलते हैं तो एक व्यक्ति सदैव देखभाल के लिए उनके साथ होता है ताकि पशु इधर उधर ना भटक जाएं। उसी प्रकार खेत मे हल जोतने वाला बैल केवल कृषक के वाणी मात्र से ये समझ जाता है कि उसे किस दिशा में मुड़ना है। यदि सही ताडन (देख-रेख) ना की जाये तो पशुधन का ह्रास हो सकता है। 
  • नारी: इसपर भी सर्वाधिक आपत्ति होती है किंतु यहां नारी के विषय में ताड़ना का अर्थ है उनका ध्यान रखना एवं रक्षा करना। नारी को हिन्दू धर्म के १४ सर्वोत्तम रत्नों में से एक माना गया है। नारी समुद्र मंथन में निकली लक्ष्मी के समान पवित्र और आदरणीय है और इसीलिए ये आवश्यक है कि उनका सदैव ताडन, अर्थात ध्यान रखा जाए। यहां पर ताडन का एक अर्थ रक्षा करना भी है। स्त्री को कभी अकेला नही छोड़ना चाहिए, उनका सदैव ध्यान रखना चाहिए और एक रत्न की भांति उनकी रक्षा के लिए सदैव तत्पर रहना चाहिए। हमारे धर्मग्रंथ और सनातन इतिहास ऐसी घटनाओं से भरे पड़े हैं जहां केवल एक नारी की सुरक्षा एवं सम्मान के लिए सहस्त्रों पुरुषों ने अपने जीवन का बलिदान कर दिया। नारी कितनी आदरणीय और मूल्यवान है, अब आप स्वयं विचार कीजिये।
तो यही वास्तव में इस दोहे का अर्थ है जिसे जान-बूझ कर, बिना समझे रामायण और श्रीराम के चरित्र हनन हेतु एवं महान सनातन हिन्दू धर्म में फूटपड़वाने हेतु उपयोग में लाया जाता है। इसका एक कारण ये भी है कि हम लोग इस दोहे के वास्तविक अर्थ से अनभिज्ञ हैं और ऐसे लोग बहुत कम हैं जो इसका वास्तविक अर्थ समझा सकें। अन्यथा क्या कोई ये सोच भी सकता है कि तुलसीदास, जो प्रभु श्रीराम की भक्ति में ऐसे लीन थे कि रामचरितमानस लिखते समय सदैव उनकी आंखों से अश्रुधारा बहती रहती थी, ऐसी आपत्तिजनक बातें लिखेंगे? ऐसा सोचना ही मूर्खता है।

आशा है कि आपको इस सुंदर दोहे का वास्तविक अर्थ समझ में आ गया होगा। यदि आ गया हो तो इसे अन्य लोगों तक भी पहुँचाने का प्रयास करें। ढोल, गंवार, शुद्र, पशु, नारी। सकल ताड़ना के अधिकारी।। अर्थात: ढोल ताडन (लयबद्ध थाप देना), गंवार (अज्ञानी) ताडन (दृष्टि रखना), शुद्र (वर्ण) वेदपाठ में ताडन (मार्गदर्शन), पशु ताडन (देख रेख) एवं नारी ताडन (ध्यान एवं रक्षा) के सकल (सदैव) अधिकारी हैं। जय श्रीराम

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