वाच्य
वाक्य के जिस रूप से इस बात का बोध हैैैै कि वाक्य में क्रिया का सम्बन्ध मुख्यत कर्ता, कर्म या भाव से है, वह वाच्य कहलाता हैै।
इनमें से किसी एक (कर्ता, कर्म या भाव) के अनुसार क्रिया के पुरुष, वचन आदि आए हैं।
वाच्य के दो प्रकार के होते हैं -
1. कर्तृवाच्य (Active Voice)
2. अकर्तृवाच्य
(i) कर्मवाच्य (Passive Voice)
(ii) भाववाच्य (Impersonal Voice)
कर्तृवाच्य
क्रिया के जिस रूप से कर्ता की प्रधानता का बोध होता है। कर्ता के उस रूपान्तर को कर्तृवाच्य कहते हैं।
जिस वाक्य में कर्ता मुख्य हो और उसकी क्रिया कर्ता के लिंग, वचन एवं पुरूष के अनुसार आई हो, वहां कर्तृवाच्य होता है। इसमे सकर्मक और अकर्मक दोनों क्रियायें हो सकती है।
- उदाहरण
रमेश खाना खाता है।
लड़किया बाजार जा रही है।
राहुल पुस्तक नहीं पढता है।
मै अंग्रेजी पढ़ रही थी।
विनजीत खाना खाकर सो गया।
लता गाना गाएगी।
ब्राह्मण वेद पढ़ेगा।
तुम फूल तोड़ोगे।
भैया फल लाएगा।
उक्त वाक्यों में कर्ता प्रधान है तथा उन्हीं के लिए 'खाता है' तथा 'पढ़ता है' क्रियाओं का विधान हुआ है, इसलिए यहाँ कर्तृवाच्य है।
कर्तृवाच्य में कर्ता विभक्ति रहित होता है और यदि विभक्ति हो तो वहां केवल ' ने ' विभक्ति का ही प्रयोग होता है। जैसे - रमेश ने केला खाया।
कर्मवाच्य
क्रिया के जिस रूप से कर्म की प्रधानता का बोध होता है। वाक्य में कर्म के उस रूपान्तर को कर्मवाच्य कहते हैं।
जिस वाक्य में कर्म मुख्य हो और उसकी क्रिया कर्म के लिंग, वचन एवं पुरूष के अनुसार आई हो, वहां कर्मवाच्य होता है। इसमे केेवल सकर्मक क्रिया के वाक्य होते
- उदाहरण
- मेरे द्वारा कहानी लिखी गई।
- नेता के द्वारा भाषण पढ़ा गया ।
- रोगी को दवा दी गई ।
- राम से पुस्तक पढ़ी गई।
- लता से गाना गाया जाएगा।
ब्राह्मण से वेद पढ़ा जाएगा।
तुमसे फूल तोड़े जाएंगे।
भैैैया द्वारा फल लाया जाएगा।
उक्त वाक्यों में कर्म प्रधान हैं तथा उन्हीं के लिए 'लिखी गई', 'पढ़ा गया', 'दी गई' तथा 'पढ़ी गई' क्रियाओं का विधान हुआ है, अतः यहाँ कर्मवाच्य है।
यहाँ क्रियाएँ कर्ता के अनुसार रूपान्तररित न होकर कर्म के अनुसार परिवर्तित हुई हैं। यहाँ ध्यान देने योग्य बात यह है कि अँगरेजी की तरह हिन्दी में कर्ता के रहते हुए कर्मवाच्य का प्रयोग नहीं होता; जैसे- 'मैं दूध पीता हूँ' के स्थान पर 'मुझसे दूध पीया जाता है' लिखना गलत होगा। हाँ, निषेध के अर्थ में यह लिखा जा सकता है- मुझसे पत्र लिखा नहीं जाता; उससे पढ़ा नहीं जाता।
भाववाच्य
वाक्य के जिस रूप से क्रिया अथवा भाव की प्रधानता का बोध होता है। वाक्य उस रूपान्तर को भाववाच्य कहते हैं।
जिस वाक्य में कर्म मुख्य हो और उसकी क्रिया कर्म के लिंग, वचन एवं पुरूष के अनुसार आई हो, वहां कर्मवाच्य होता है। इसमे केेवल अकर्मक क्रिया के वाक्य होते
दूसरे शब्दों में- क्रिया के जिस रूप में न तो कर्ता की प्रधानता हो न कर्म की, बल्कि क्रिया का भाव ही प्रधान हो, वहाँ भाववाच्य होता है।
- उदाहरण
- रहीम से चला भी नहीं जाता।
- उससे उठा भी नहीं जाता ।
- धूप में चला भी नहीं जाता।
- राम तेज दौड़ता है।
मैं सर्दियों में नहीं नहाता।
रमा नहीं पढ़ती।
मैं हँसता हूँ।
मोर ऊँचा नहीं उड़ता। - आशा नहीं हँसती।
- बच्चा खूब सोया।
उक्त वाक्यों में कर्ता या कर्म प्रधान न होकर भाव मुख्य हैं, अतः इनकी क्रियाएँ भाववाच्य का उदाहरण हैं।
टिप्पणी- यहाँ यह स्पष्ट है कि कर्तृवाच्य में क्रिया सकर्मक और अकर्मक दोनों हो सकती है, किन्तु कर्मवाच्य में केवल सकर्मक और भाववाच्य में अकर्मक होती हैं।
Post a Comment
Post a Comment