रस किसे कहते है ? इसके प्रमुख अवयवों के बारे में विस्तार से समझाइए।
रस को 'काव्य की आत्मा' या 'प्राण तत्व' माना जाता है।
रस उत्पत्ति को सबसे पहले परिभाषित करने का श्रेय भरत मुनि को जाता है। उन्होंने अपने 'नाट्यशास्त्र' में आठ प्रकार के रसों का वर्णन किया है।
भरतमुनि ने लिखा है-
विभावानुभावव्यभिचारी- संयोगद्रसनिष्पत्ति।
अर्थात विभाव, अनुभाव तथा संचारी भावों के संयोग से ही रसों की निष्पत्ति या उत्पत्ति होती है।
रस क्या होता है ?
किसी भी वाक्य को सुनने के बाद, हमें जो अनुभूति होती है । उसे रस कहते हैं।
मन के विकारों को भाव कहते हैं और भाभी रसों के आधार हैं। यह दो प्रकार के होते हैं इस स्थाई भाव और संचारी भाव।
उदाहरण – यहां हम आपको बताना चाहेंगे कि जिन बातों को सुनने के बाद हमारे मन में जिस भी विषय या स्थाई भाव ( रति, हास, शोक, क्रोध, उत्साह, जुगुप्सा, विस्मय, निर्वेद, वात्सलता आदि ) की अनुभूति हो, उसे रस कहते हैं।
(1) शृंगार रस को ‘रसराज/ रसपति’ कहा जाता है।
(2) नाटक में 8 ही रस माने जाते है क्योंकि वहां शांत को रस में नहीं गिना जाता। भरत मुनि ने रसों की संख्या 8 माना है।
(3) श्रृंगार रस के व्यापक दायरे में वत्सल रस व भक्ति रस आ जाते हैं इसलिए रसों की संख्या 9 ही मानना ज्यादा उपयुक्त है।
आइए अब जानने का प्रयास करते हैं कि यह विभाव अनुभाव और संचारी भाव कौन-कौन से होते हैं।
रस के अवयव:- एक रस के चार अवयव या अंग माने गए हैं:-
(1) स्थायी भाव (2) विभाव (3) अनुभाव (4) संचारी या व्यभिचारी भाव
(1) स्थायी भाव:-
प्रश्न - स्थाई भाव क्या है, उदाहरण देकर स्पष्ट कीजिए?
उत्तर- साहित्य के वे मूल तत्व जो मूलतः मनुष्यों के मन में प्रायः सर्वदा निहित रहते हैं और कुछ विशेष अवसरों अथवा कारणों से स्पष्ट रूप से प्रकट होते हैं। स्थाई भाव कहलाते हैं।
इनके रसों में मूल तथा स्थायी रूप से स्थापित रहने और किसी दूसरे भाव की प्रबलता मैं भी उससे ए प्रभावी रहने के कारण ये भाव स्थायी कहलाते हैं।
जैसे–प्रेम, हर्ष या उससे उत्पन्न होनेवाला हास्य, खेद, दुःख, शोक, भय, वैराग्य आदि। इन्ही तत्वों या भावों के आधार पर साहित्य के ये नौ रस स्थिर हुए हैं–श्रंगार, हस्य, करुण, रौद्र, वीर, भयानक, वीभत्स और शांत।
एक रस के मूल में एक स्थायी भाव रहता है। अतएव रसों की संख्या भी 9 हैं, इस कारण इन्हें नवरस कहा जाता है।मूलत: नवरस अर्थात नो ही रस माने जाते हैं।
बाद के आचार्यों ने 2 और भावों वात्सल्य और भगवद विषयक रति को स्थायी भाव की मान्यता दी है। जिससे स्थाई भावों की संख्या 11 हो गई और रस भी 11 हो गए। इस प्रकार रसों की संख्या भी 11 तक पहुँच जाती है।
शृंगार रस में ही वात्सल्य और भक्ति रस भी शामिल हैं |
इन्हीं स्थाई भावों के आधार पर रसों को नाम दिए गए हैं जो निम्नलिखित हैं।
स्थायी - भाव
श्रृंगार–रति
हास्य—हास
करुण–शोक
रौद्र—क्रोध
वीर–उत्साह
भयानक—भय
वीभत्स—जुगुप्सा
अद्भुत—विस्मय
शांत—निर्वेद
वात्सल्य—वत्सलता
भक्ति रस —अनुराग
(2) विभाव:- साहित्य में, वह कारण जिसके आश्रय में भाव जाग्रत या उद्दीप्त होता है। विभाव कहलाता है। स्थायी भावों के उद्बोधक कारणों को विभाव कहते हैं।
विभाव दो प्रकार के होते हैं-
(अ) आलंबन विभाव
(आ) उद्दीपन विभाव
(अ) आलंबन विभाव :- वह कारण जिसका आलंब या सहारा पाकर स्थायी भाव जग्रत होते हैं, आलंबन विभाव कहलाता है।
आलंबन विभाव के दो पक्ष होते हैं, आश्रयालंबन तथा विषयालंबन
इन्हें हम इस प्रकार समझ सकते हैं कि जिसके मन में भाव जगे, वह आश्रयालंबन है तथा जिसके प्रति (या जिसके कारण) मन में भाव जगे, वह विषयालंबन कहलाता है।
उदाहरण : यदि राम के मन में सीता के प्रति प्रेम का भाव जगता है तो राम आश्रय होंगे और सीता विषय।
(आ) उद्दीपन विभाव:- जिन वस्तुओं या परिस्थितियों के कारण या देख सुनकर स्थायी भाव उद्दीप्त होने लगता है, उद्दीपन विभाव कहलाता है। जैसे- चाँदनी, कोकिल कूजन, एकांत स्थल, रमणीक उद्यान आदि।
(3) अनुभाव :- वे गुण और क्रियाएँ जिनसे रस का बोध हो। मनोगत भाव को व्यक्त करने वाले शरीर-विकार अनुभाव कहलाते हैं।
अनुभावों की संख्या 8 मानी गई है-
(1) स्तंभ
(2) स्वेद
(3) रोमांच
(4) स्वर-भंग
(5) कम्प
(6) विवर्णता (रंगहीनता)
(7) अश्रु
(8) प्रलय (संज्ञाहीनता/निश्चेष्टता) ।
मन के भाव को व्यक्त करने वाले शरीर विकार ही अनुभाव कहलाते है, अर्थात वह भाव जिसके द्वारा किसी व्यक्ति के मन के भावो को उसके शरीर के विकारो से जाना जा सकता है। इसके भी दो भाग होते हैं.
(अ) कायिक अनुभाव – वह भाव अथवा कार्य जो काया अर्थात शरीर के द्वारा करने के लिए प्रेरित करता है।कायिक अनुभाव कहलाता। जो अपनी खुद की मर्जी से किया जाता हो।
(आ) सात्विक अनुभाव – जो काम अपनी मर्जी के विरुद्ध हो रहा हो या अपनी इच्छा के विरुद्ध हो रहा है उसे सात्विक अनुभाव कहते हैं।
शेर से डरकर अपना हाथ पैर फूल जाना सोचने समझने की क्षमता का खो जाना आदि की स्थिति में उत्पन्न भावों को हम सात्विक अनुभाव कहेंगे।
(4) संचारी या व्यभिचारी भाव :- संचरण का अर्थ होता है आने जाने वाले अर्थात मन में संचरण करने वाले (आने-जाने वाले) भावों को संचारी या व्यभिचारी भाव कहते हैं, ये भाव पानी के बुलबुलों के सामान उठते और विलीन होते रहते हैं।
संचारी या व्यभिचारी भावों की कुल संख्या 33 मानी गई है। जो इस प्रकार है।
(1) हर्ष (2) विषाद (3) त्रास (भय/व्यग्रता) (4) लज्जा (5) ग्लानि (6) चिंता (7) शंका (8) असूया (दूसरे के उत्कर्ष के प्रति असहिष्णुता) (9) अमर्ष (विरोधी का अपकार करने की अक्षमता से उत्पत्र दुःख) (10) मोह (11) गर्व (12) उत्सुकता (13) उग्रता (14) चपलता (15) दीनता (16) जड़ता (17) आवेग (18) निर्वेद (अपने को कोसना या धिक्कारना) (19) घृति (इच्छाओं की पूर्ति, चित्त की चंचलता का अभाव) (20) मति (21) बिबोध (चैतन्य लाभ) (22) वितर्क (23) श्रम (24) आलस्य (25) निद्रा (26) स्वप्न (27) स्मृति (28) मद (29) उन्माद 30) अवहित्था (हर्ष आदि भावों को छिपाना) (31) अपस्मार (मूर्च्छा) (32) व्याधि (रोग) (33) मरण
रस किसे कहते है और इसके कितने भेद होते हैं
आज हम आपको इस पोस्ट में एक और बढ़िया और फायदेमंद जानकारी बताएंगे. इससे पहले पोस्ट में हमने आपको अलंकार क्या होते हैं उसके कितने भेद होते हैं और इससे संबंधित और से बातें बताई थी. तो आज उसी तरह की एक और जानकारी हम आपको इस पोस्ट में बता रहे है. आज हम आपको इस पोस्ट में रस क्या होता है. इसके कितने भेद होते हैं. और इसके बारे में कुछ और भी महत्वपूर्ण जानकारी बतायेगे इन सभी चीजों के बारे में हम आपको उदाहरण सहित और विस्तार से समझाएंगे.
तो यह जानकारी आपके लिए बहुत ही जानना जरूरी है. कई बार जब एग्जाम का समय आता है तो स्टूडेंटस समय नजदीक आने के बाद पढ़ना शुरू करते हैं और वह सभी चीजें जल्दी-जल्दी में पढ़ते.और स्टूडेंट्स इन चीजों को अच्छे से याद नहीं कर पाते है इसलिए उनको एग्जाम देते समय बहुत दिक्कत होती है. वह कई बार ये चीजें स्टूडेंटस भूल भी जाते हैं.और हम आपको इन के बारे में आसान और सरल भाषा में समझाएंगे तो आप नीचे दी गई हमारी इस जानकारी को अच्छी तरह से पढ़े और याद करें.
रस क्या होता है
किसी भी वाक्य को किसी भी वाक्य को सुनने के बाद हमें जो अनुभूति होती है उसे रस कहते हैं.
उदाहरण – जिन बातों को सुनने के बाद हमारे मन में आनंद की अनुभूति हो यह हमारे मन में आनंद का अभाव हो उसे रस कहते हैं. जैसे कई बार हम किसी बात को सुनने के बाद खुश हो जाते हैं या कई बार हम उस बात पर ज्यादा ध्यान देते हैं.और कई बार सॉन्ग सुनकर हमारे मन में खुशी महसूस करते हैं. तो हमें उस समय आनंद आता है. तो कई बार हम किसी चीज को देखकर अपने मन में खुशी महसूस करते हैं. तो उस समय हमारे मन में जो आनंद होता है. उसे ही रस कहा जाता है. साधारण भाषा में रस का मतलब आनंद होता है.
रस के भेद
मुख्य रूप से रस के नौ भेद होते हैं. वैसे तो हिंदी में 9 ही रस होते हैं लेकिन सूरदास जी ने एक रस और दिया है जो कि 10 रस माना जाता है.
1. श्रृंगार – जब नायक नायिका के बिछुड़ने का वर्णन होता है तो वियोग श्रृंगार होता है.
श्रृंगार रस का उदाहरण :
मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई
जाके सिर मोर मुकुट मेरा पति सोई
2. अद्भुत – जब किसी गद्य कृति या काव्य में किसी ऐसी बात का वर्णन हो जिसे पढ़कर या सुनकर आश्चर्य हो तो अद्भुत रस होता है.
अद्भुत रस का उदाहरण :
देखरावा मातहि निज अदभुत रूप अखण्ड
रोम रोम प्रति लगे कोटि-कोटि ब्रह्माण्ड
3. करुण – जब भी किसी साहित्यिक काव्य ,गद्य आदि को पढ़ने के बाद मन में करुणा,दया का भाव उत्पन्न हो तो करुण रस होता है.
करुण रस का उदाहरण :
हाय राम कैसे झेलें हम अपनी लज्जा अपना शोक
गया हमारे ही हाथों से अपना राष्ट्र पिता परलोक
4. हास्य – जब किसी काव्य आदि को पढ़कर हँसी आये तो समझ लीजिए यहां हास्य रस है.
हास्य रस का उदाहरण :
सीरा पर गंगा हसै, भुजानि में भुजंगा हसै
हास ही को दंगा भयो, नंगा के विवाह में
5. वीर – जब किसी काव्य में किसी की वीरता का वर्णन होता है तो वहां वीर रस होता है.
वीर रस का उदाहरण :
चढ़ चेतक पर तलवार उठा करता था भूतल पानी को
राणा प्रताप सर काट-काट करता था सफल जवानी को
6. भयानक – जब भी किसी काव्य को पढ़कर मन में भय उत्पन्न हो या काव्य में किसी के कार्य से किसी के भयभीत होने का वर्णन हो तो भयानक रस होता है.
भयानक रस का उदाहरण :
अखिल यौवन के रंग उभार, हड्डियों के हिलाते कंकाल
कचो के चिकने काले, व्याल, केंचुली, काँस, सिबार
7. शांत – जब कभी ऐसे काव्यों को पढ़कर मन में असीम शान्ति का एवं दुनिया से मोह खत्म होने का भाव उत्पन्न हो तो शांत रस होता है.
शांत रस का उदाहरण :
जब मै था तब हरि नाहिं अब हरि है मै नाहिं
सब अँधियारा मिट गया जब दीपक देख्या माहिं
8 रौद्र – जब किसी काव्य में किसी व्यक्ति के क्रोध का वर्णन होता है. तो वहां रौद्र रस होता है.
रौद्र रस का उदाहरण :
उस काल मरे क्रोध के तन काँपने उसका लगा
मानो हवा के जोर से सोता हुआ सागर जगा
9. वीभत्स – वीभत्स यानि घृणा जब भी किसी काव्य को पढ़कर मन में घृणा आये तो वीभत्स रस होता है।ये रस मुख्यतः युद्धों के वर्णन में पाया जाता है. जिनमें युद्ध के पश्चात लाशों, चील कौओं का बड़ा ही घृणास्पद वर्णन होता है.
वीभत्स रस का उदाहरण :
आँखे निकाल उड़ जाते, क्षण भर उड़ कर आ जाते
शव जीभ खींचकर कौवे, चुभला-चभला कर खाते
भोजन में श्वान लगे मुरदे थे भू पर लेटे
खा माँस चाट लेते थे, चटनी सैम बहते बहते बेटे
10. वात्सल्य – जब काव्य में किसी की बाल लीलाओं या किसी के बचपन का वर्णन होता है. तो वात्सल्य रस होता है. सूरदास ने जिन पदों में श्री कृष्ण की बाल लीलाओं का वर्णन किया है उनमें वात्सल्य रस है.
वात्सल्य रस का उदाहरण :
बाल दसा सुख निरखि जसोदा, पुनि पुनि नन्द बुलवाति
अंचरा-तर लै ढ़ाकी सूर, प्रभु कौ दूध पियावति
रस के प्रकार
मुख्य रूप से रस के नौ भेद होते हैं.और इसके चार प्रकार होते हैं. और सभी तत्वों में इन 9 भेदों के अलग-अलग अर्थ होते हैं. नीचे हम आपको इन चारों प्रकार में से इसके सबसे पहले प्रकार के बारे में बतायेगे.
स्थायी भाव
श्रृंगार–रति
हास्य—हास
करुण–शोक
रौद्र—क्रोध
वीर–उत्साह
भयानक—भय
वीभत्स—जुगुप्सा
अद्भुत—विस्मय
शांत—निर्वेद
वात्सल्य—वत्सलता
स्थायी भाव हमारे जन्म के दौरान ही हमारे अंदर होते हैं जैसे हम किसी बच्चे को देखते हैं जब बच्चा जन्म लेता है तो वह अपनी मां के पास रहकर भी खुशी महसूस करता है जो दूसरे लोगों के पास जाने के बाद या तो रोने लगेगा खुश नहीं होगा. तो उसे ही स्थायी भाव कहा जाता है.
विभाव
जिन कारणों से स्थायी भाव उत्पन्न होता है. उनको जागृत करता है उनको जगाता है. उनको तेज करता है. उसे विभव कहते हैं. इसके भी दो भाग होते हैं.
1.आलंबन विभाव – जिसका सहारा या आलंबन पाकर स्थायी भाव जागृत होता है,उसे आलंबन विभाव कहते है.
अगर मान लो हमें किसी को देख कर हमारे मन में प्यार उठता है या उसके लिए कुछ फीलिंग होती है. तो उस चीज को आलंबन विभाव कहेंगे. क्योंकि हमारे मन में उसके लिए प्यार तो पहले से ही है. लेकिन उसको सामने देखने के बाद उसके लिए हमें फीलिंग उठनी शुरू हो जाती है. यानी जब हमारा प्यार जागना शुरू हो जाता है. तो इसी चीज को आलंबन विभाव कहां जाता है.
2.उद्दीपन विभाव – जिन वस्तुओ या परिस्थिति को देखकर स्थायी भाव उद्दीप्त होने लगता है. मान लो हमें किसी को देख कर हमारे मन में प्यार उठता है. या उसके लिए कुछ फीलिंग होती है. तो उस चीज को हम उद्दीपन विभाव कहेंगे. क्योंकि हमारे मन में उसके लिए प्यार तो पहले से ही है. लेकिन किसी को सामने देखने के बाद उसके लिए हमें फीलिंग उठनी शुरू हो जाती है. यानी जब हमारा प्यार जागना शुरू हो जाता है तो इसी चीज को उद्दीपन विभाव कहां जाता है.
अनुभाव
मन के भाव को व्यक्त करने वाले शरीर विकार ही अनुभाव कहलाते है. अर्थात वह भाव जिसके द्वारा किसी व्यक्ति के मन के भावो को उसके शरीर के विकारो से जाना जा सकता है.इसके भी दो भाग होते हैं.
1.कायिक – मान लो अगर आपको कोई भी जानवर मारने के लिए आपके पीछे दौड़ रहा है. और आप उसको दूर करने के लिए या उससे भगाने के लिए कुछ चीजें उठाते हो जैसे लाठी, तलवार या कुछ भी चीज जो आप अपनी मर्जी से उठाते हैं. वह कायिक अनुभाव कहलाता. जो अपनी खुद की मर्जी से किया जाता हो.
2.सात्विक – जो काम अपनी मर्जी के विरुद्ध हो रहा हो या अपनी इच्छा के विरुद्ध हो रहा हूं उसे सात्विक अनुभाव कहते हैं.मान लीजिए अगर आप कहीं जंगल में जा रहे हैं. और आपको डर लग रहा है. कि सामने से शायद शेर आ जाएगा तो आप अपने आप डर जाते हैं.जिससे कई बार आपके शरीर पर पसीना छूटने लगता है. यह आपके हाथ पैर कांपने लगते हैं. जिस पर कि आप को कंट्रोल नहीं होता है. और वह अपने आप को और कांपने लग जाते हैं. तो इस स्थिति में हम उसको सात्विक अनुभाव कहेंगे.
संचारी भाव
मन में संचरण अर्थात आने – जाने वाले भावो को संचारी भाव कहते है. जो हमारे मन में कुछ समय के लिए महसूस होता है या कुछ समय के लिए जो भाव आते हैं. जैसे हम शहर जा रहे हैं और हमारी बस छूट गई तो हमें कुछ समय के लिए ऐसा महसूस होगा कि शायद अगर यह बस हमारी ना छुटती तो सायद हम टाइम से शहर पहुंच सकते थे. लेकिन वह कुछ ही समय के लिए हमें महसूस होगा. बाद में हम उसे भूल जाएंगे. यानी कुछ समय के लिए हमारे मन में वह विचार आया और बाद में वापस चला गया उसे हम संचारी भाव कहते है.
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