विस्तृत उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1:
रोगी के कमरे का चुनाव करते समय किन-किन बातों को ध्यान में रखना चाहिए?
या
रोगी के कमरे का चुनाव करते समय आप किन-किन बातों का ध्यान रखेंगी?रोगी के कमरे के आवश्यक सामानों की सूची बनाइए।
उत्तर:
रोगी के कमरे का चयन
- रोगी का कमरा पर्याप्त बड़ा होना चाहिए। सामान्यतः रोगी का कमरा 450-500 घन मीटर स्थान वाला होना आवश्यक है। इस आकार के कमरे में रोगी को पर्याप्त ऑक्सीजन मिल सकती है।
- रोगी का कमरा मुख्य द्वार तथा सड़क से दूर मकान के पीछे की ओर होना चाहिए। इस प्रकार को कमरा शान्त एवं आरामदायक रहता है तथा सड़क से उठने वाली धूल से सुरक्षित रहता है।
- रोगी के कमरे में खिड़कियाँ, रोशनदान व दरवाजे आदि इस प्रकार होने चाहिए कि वायु का संवातन भली-भाँति बना रहे।
- खिड़कियों तथा रोशनदान से सूर्य का प्रकाश आते रहना चाहिए जिससे कि रोगाणुओं के पनपने की आशंका न रहे। स्वच्छ वायु एवं सूर्य का प्रकाश रोगी के शीघ्र स्वास्थ्य लाभ में सहायता करते हैं। दार किवाड़ होना अति आवश्यक है। इनसे मक्खियाँ, मच्छर व वायु में उड़ने वाले अन्य कीड़े कमरे में प्रवेश नहीं कर पाते।
- रोगी का कमरा रसोईघर व अन्य शयन-कक्षों से दूर होना चाहिए।
- रोगी का कमरा स्नानगृह तथा शौचालय के पास होना चाहिए ताकि रोगी को स्नान करने व शौच जाने के लिए अधिक दूर न जाना पड़े।
- रोगी के कमरे के बाहर बरामदा होने पर वह इसका उपयोग टहलने तथा खुली वायु में बैठने के लिए कर सकता है। वैसे भी बरामदा होने पर कमरे के अन्दर का वातावरण अधिक उपयुक्त रह संकता है तथा धूल इत्यादि भी कमरे में प्रवेश नहीं करेगी।
- रोगी के कमरे में अन्धकार, दुर्गन्ध, सीलन तथा नमी आदि नहीं रहनी चाहिए, क्योंकि इनकी उपस्थिति में रोगाणु आसानी से पनपते हैं।
- रोगी के कमरे का फर्श पक्का व साफ-सुथरा होना चाहिए। पक्के फर्श को सहज ही कीटाणुनाशक घोल द्वारा धोया जा सकता है। कमरे में पानी के (UPBoardSolutions.com) निकास के लिए नालियों का होना भी आवश्यक है।
- रोगी के कमरे का चयन करते समय मौसम का ध्यान रखना भी आवश्यक है। ग्रीष्म ऋतु में रोगी का कमरा ऐसा होना चाहिए कि यह अधिक गर्म न होता हो, जबकि शरद् ऋतु में गर्म रहने वाला कमरा उपयुक्त रहता है।
- रोगी के कमरे से संलग्न एक छोटे कमरे का होना अच्छा रहता है। इस कमरे को परिचारिका प्रयोग में ला सकती है तथा सहज ही रोगी की परिचर्या कर सकती है। इसके अतिरिक्त इस कमरे में रोगी के उपयोग में आने वाली वस्तुओं को रखा जा सकता है।
- रोगी के कमरे की दीवारें स्वच्छ एवं चूने से पुती होनी चाहिए। दीवारों पर रोगी की रुचि के अनुसार चित्र व अन्य सज्जा-सामग्री की व्यवस्था होनी चाहिए।
रोगी के कमरे के सामान की सूची
रोगी की आवश्यकताओं एवं सुविधाओं की पूर्ति के लिए निम्नलिखित सामग्री होनी आवश्यक है
- कसी हुई चारपाई अथवा स्प्रिंगदार पलंग।
- दो छोटी मेज व दो कुर्सियाँ।
- दो स्टूल।
- भोज्य पदार्थों व औषधियों आदि को रखने के लिए एक जालीदार छोटी अलमारी।
- वस्त्र, तौलिए आदि रखने के लिए एक अन्य अलमारी।
- विशेष उपयोग के पात्र; जैसे—मल-मूत्र विसर्जन पात्र, बाल्टी व कूड़ेदान आदि।
- मनोरंजन के लिए पत्रिकाए, ट्रांजिस्टर व टी० बी० आदि।
- थर्मामीटर व ताप तथा नाड़ी के लिए चार्ट।
- गिलास, प्याला, चम्मच, चाकू व प्लेट आदि।
- दीवारों के लिए सुन्दर व आकर्षक चित्र एवं मेज के लिए फूलदान।
- साबुन, पेस्ट, डिटॉल, फिनाइल व फिनिट आदि।
- थूकने, वमन करने, पेस्ट करने व हाथ धुलाने के लिए चिलमची।
लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1:
रोगी व्यक्ति के लिए अलग कमरे की व्यवस्था क्यों की जाती है?
उत्तर:
स्वास्थ्य विज्ञान की सैद्धान्तिक मान्यता है कि रोगी व्यक्ति को सामान्य रूप से अलग कमरे में ही रखा जाना चाहिए। विभिन्न कारणों से रोगी के लिए अलग कमरे की व्यवस्था को आवश्यक माना। जाता है। वास्तव में इस व्यवस्था से जहाँ एक ओर रोगी को लाभ होता है, वहीं दूसरी ओर परिवार के अन्य सदस्यों के स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से भी इसे आवश्यक माना जाता है। रोगी व्यक्ति प्रायः काफी दुर्बल हो जाता है तथा उसे अतिरिक्त विश्राम की आवश्यकता होती है। उसके सोने-जागने का समय भी अनिश्चित हो जाता है। (UPBoardSolutions.com) इस स्थिति में उसे शान्त एवं एकान्त वातावरण की आवश्यकता होती है। इस उद्देश्य से रोगी को अलग कमरे में रखना ही उचित माना जाता है। रोगी के लिए यदि अलग कमरे की व्यवस्था हो जाती है तो उसकी आवश्यकता की समस्त वस्तुओं को वहीं रखा जा सकता है। रोगी के लिए अलग कमरे की व्यवस्था होने की स्थिति में परिवार के अन्य सदस्य भी लाभान्वित होते हैं। इस स्थिति में परिवार के अन्य सदस्य रोग के संक्रमण से कुछ हद तक बच सकते हैं।
प्रश्न 2:
रोगी के कमरे में सफाई की व्यवस्था आप किस प्रकार करेंगी?
उत्तर:
उत्तम स्वास्थ्य तथा स्वास्थ्य लाभ के लिए स्वच्छ वातावरण का होना अति आवश्यक है। गन्दगी सदैव रोगाणुओं को पनपने का अवसर प्रदान करती है; अतः रोगी के कमरे की नियमित सफाई अति आवश्यक है। यह निम्नलिखित प्रकार से की जानी चाहिए
- फर्श की सफाई प्रतिदिन फिनाइल के घोल से की जानी चाहिए। फिनाइल का घोल कीटाणुओं को नष्ट कर देता है।
- कमरे की दीवारों से मकड़ी के जाले साफ करें तथा दिन में एक बार कीटनाशक (फ्लिट, बेगौन स्प्रे आदि) का प्रयोग करना चाहिए ताकि रोगी के कमरे में मक्खियाँ व मच्छर न रहें।
- रोगी के कमरे के परदे, बैड कवर व अन्य सूती वस्त्रों को खौलते पानी से धोने से वे साफ व कीटाणुरहित हो जाते हैं। कृत्रिम धागों से बने वस्त्रों तथा ऊनी वस्त्रों की शुष्क धुलाई कराएँ।
- रोगी के बर्तन, चिलमची वे पीकदान आदि की सफाई के लिए नि:संक्रामकं घोल का प्रयोग करें।
- फूलदान आदि में ताजे पुष्प लगाएँ और यदि सम्भव हो, तो दीवारों पर लगे चित्रों को भी बदल दें। स्वच्छ एवं सुसज्जित कमरा रोगी को मानसिक सुख एवं सन्तोष प्रदान करता है।
प्रश्न 3:
रोगी के कमरे में सूर्य का प्रकाश आना क्यों आवश्यक है?
उत्तर:
रोगी के कमरे में दिन में कुछ समय के लिए धूप का आना अत्यावश्यक है, क्योंकि
- सूर्य का प्रकाश कमरे के अन्धकार वे नमी को दूर करता है; अत: रोगाणुओं के पनपने की आशंका कम हो जाती है।
- सूर्य का प्रकाश कीटाणुनाशक की तरह कार्य करता है तथा अनेक प्रकार के रोगाणुओं को नष्ट । कर देता है।
- सूर्य के प्रकाश से हमारे शरीर में विटामिन ‘डी’ का निर्माण होता है; अतः धूप की उपस्थिति रोगी के स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से लाभदायक रहती है। यद्यपि सूर्य के प्रकाश में रोगी को उपर्युक्त लाभ होते हैं, परन्तु तीव्र व चकाचौंध करने वाला प्रकाश रोगी की बेचैनी बढ़ा सकता है (UPBoardSolutions.com) तथा उसके आराम में व्यवधान उत्पन्न कर सकता है। अतः आवश्यक एवं व्यवस्थित प्रकाश के लिए रोगी के कमरे में परदों का प्रयोग किया जाना चाहिए। परदों द्वारा सूर्य के प्रकाश एवं धूप को अपनी इच्छा एवं आवश्यकता के अनुसार नियन्त्रित किया जा सकता है।
प्रश्न 4:
रोगी के कमरे में प्रकाश-व्यवस्था कैसी होनी चाहिए?
उत्तर:
रोगी के कमरे में रात के समय तीव्र या चकाचौंध करने वाला प्रकाश नहीं होना चाहिए। यदि घर में बिजली हो तो सामान्य रूप से हल्के दूधिया रंग का बल्ब ही इस्तेमाल करना चाहिए। यदि बिजली न हो तो तेल से जलने वाला दीपक या लालटेन जलाई जा सकती है। ध्यान रहे, (UPBoardSolutions.com) इनकी लौ कम : रखनी चाहिए ताकि इनका कच्चा धुआँ न बनने पाए। दीपक या लालटेन को रोगी के पलंग से काफी दूर ही रखना चाहिए।
अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1:
आपके विचार से रोगी को कमरा कैसा होना चाहिए?
उत्तर:
हमारे विचार से रोगी का कमरा साफ-सुथरा, हवादार तथा प्रकाशयुक्त होना चाहिए।
प्रश्न 2:
रोगी के कमरे की सफाई को अधिक महत्त्व क्यों दिया जाता है?
उत्तर:
नियमित सफाई से रोग के जीवाणुओं को बढ़ने से रोका जा सकता है, इससे रोगी के शीघ्र स्वस्थ होने में योगदान प्राप्त होता है। इसी कारण से रोगी के कमरे की सफाई को अधिक महत्त्व दिया जाता है।
प्रश्न 3:
रोगी के कमरे में पोछा लगाने के लिए पानी में क्या मिलाया जाता है?
उत्तर:
रोगी के कमरे में पोछा लगाने के लिए पानी में फिनाइल आदि निसंक्रामक घोल मिलाया जाता है।
प्रश्न 4:
रोगी के कमरे में धूप का उचित प्रबन्ध क्यों आवश्यक है?
उत्तर:
सूर्य की किरणें अनेक रोगाणुओं को नष्ट करती हैं तथा रोगी को स्वास्थ्य लाभ करने में सहायता करती हैं।
प्रश्न 5:
रोगी के कमरे में वायु के संवातन का क्या महत्त्व है?
उत्तर:
वायु की उपयुक्त संवातन व्यवस्था से रोगी को शुद्ध वायु प्राप्त होती है तथा कमरे की अशुद्ध वायु बाहर निकल जाती है। इस स्थिति में रोग के जीवाणु भी अधिक नहीं पनप पाते।
प्रश्न 6:
रोगी के कमरे का तापक्रम क्या रहना चाहिए?
उत्तर:
रोगी के कमरे का तापक्रम सामान्यतः 98° फॉरेनहाइट (लगभग 37° सेन्टीग्रेड) रहना। चाहिए।
प्रश्न 7:
रोगी के कमरे का तापक्रम किस प्रकार नियन्त्रित किया जा सकता है?
उत्तर:
रोगी के कमरे के तापक्रम को नियन्त्रित करने के लिए ग्रीष्म ऋतु में कूलर व वातानुकूलन यन्त्र तथा शरद् ऋतु में रूम-हीटर प्रयोग में लाए जाते हैं।
प्रश्न 8:
रोगी के कमरे से रात्रि में साज-सज्जा वाले पौधे अथवा फूलदान क्यों हटा देने चाहिए?
उत्तर:
रात्रि में पौधों में श्वसन क्रिया अधिक होती है, जिसके फलस्वरूप हानिकारक कार्बन डाइऑक्साइड अधिक निष्कासित होती है; अतः रोगी के कमरे से रात्रि में फूलदान इत्यादि को हटाना उचित रहता है।
प्रश्न 9:
रोगी के कपड़े यथासम्भव सूती होने चाहिए, क्यों?
उत्तर:
क्योंकि सूती वस्त्रों को खौलते पानी में धोकर सहज ही नि:संक्रमित किया जा सकता है।
प्रश्न 10:
रोगी के कमरे में मनोरंजन की व्यवस्था आप कैसे करेंगी?
उत्तर:
रोगी के मनोरंजन के लिए उसके कमरे में पत्रिकाएँ, ट्रांजिस्टर व टी० बी० इत्यादि रखे जा सकते हैं।
प्रश्न 11:
रोगी के पलंग की विशेषता बताइए।
उत्तर:
रोगी का पलंग ऊँचा, स्प्रिंग वाला तथा लोहे का बना ठीक रहता है।
प्रश्न 12:
मेल-पात्र की आवश्यकता किस दशा में होती है?
उत्तर:
मल-पात्र की आवश्यकता रोगी के उठने-बैठने में असमर्थ होने की दशा में होती है।
वसतुनिष्ठ प्रश्न
प्रश्न-प्रत्येक प्रश्न के चार वैकल्पिक उत्तर दिए गए हैं। इनमें से सही विकल्प चुनकर लिखिए
(1) संक्रामक रोगग्रस्त व्यक्ति को आप किस प्रकार रखेंगी?
(क) अलग कमरे में,
(ख) बच्चों के कमरे में,
(ग) किसी के भी कमरे में,
(घ) बरामदे में।
(2) रोगी का कमरा होना चाहिए
(क) रसोईघर के पास,
(ख) पशुशाला के पास,
(ग) शौचालय एवं स्नान घर के पास,
(घ) बैठक में कमरे के पास।
(3) रोगी के कमरे की दीवारें पुती होनी चाहिए
(क) पेन्ट्स से,
(ख) चूने से,
(ग) डिस्टेम्पर से,
(घ) किसी से भी।
(4) रोगी के मनोरंजन के लिए कमरे में होनी चाहिए
(क) पत्रिकाएँ,
(ख) ट्रांजिस्टर,
(ग) टी० बी०,
(घ) ये सभी।
(5) रोगी के लिए उपयुक्त वस्त्र होते हैं
(क) नायलॉन के,
(ख) सूती,
(ग) टेरीकॉट,
(घ) जरीदार।
(6) रोगी के कमरे के फर्श को प्रतिदिन धोना चाहिए
(क) डिटॉल से,
(ख) फिनिट से,
(ग) फिनाइल से,
(घ) लाल दवा से।
(7) रोगी के कमरे का तापक्रम रहना चाहिए
(क) 90° फॉरेनहाइट,
(ख) 100° फॉरेनहाइट,
(ग) 40° सेन्टीग्रेड,
(घ) 37° सेन्टीग्रेड।
(8) रोगी के कमरे में प्रकाश की व्यवस्था होनी चाहिए
(क) लाल या हरे रंग की,
(ख) तेज एवं चमकदार,
(ग) हल्की तथा दूधिया रंग की,
(घ) किसी भी प्रकार की।
(9) रोगी के इस्तेमाल के लिए उपयोगी पलंग होना चाहिए
(क) तख्त के रूप में,
(ख) सामान्य फोल्डिग चारपाई,
(ग) सिंप्रग द्वारा कसा हुआ पलंग,
(घ) इनमें से कोई भी।
(10) रोगी के बिस्तर पर बिछाई जाने वाली चादर होनी चाहिए
(क) काले या पीले रंग की,
(ख) हरे या नीले रंग की,
(ग) सफेद रंग की,
(घ) किसी भी गहरे रंग की।
उत्तर:
(1) (क) अलग कमरे में,
(2) (ग) शौचालय एवं स्नान घर के पास,
(3) (ख) चूने से,
(4) (घ) ये सभी,
(5) (ख) सूती,
(6) (ग) फिनाइल से,
(7) (घ) 37° सेन्टीग्रेड,
(8) (ग) हल्की तथा दूधिया रंग की,
(9) (ग) सिंप्रग द्वारा कसा हुआ पलंग,
(10) (ग) सफेद रंग की।
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RBSE Class 12 Home Science Chapter 19 पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
निम्नलिखित में से सही उत्तर चुनें –
(i) भोज्य पदार्थ में मिलाए जाने वाले बाह्य अथवा निम्न श्रेणी के पदार्थों को कहते हैं –
(अ) कंकड़ पत्थर
(ब) मिलावटी अवयव
(स) बाह्य तत्व
(द) ये सभी
उत्तर:
(ब) मिलावटी अवयव
(ii) मिलावट जिसे विक्रेता स्वयं अधिक-से-अधिक लाभ कमाने हेतु करता है –
(अ) आपातिक मिलावट
(ब) उद्देश्यपूर्ण मिलावट
(स) धात्विक मिलावट
(द) सूक्ष्म जैविक संदूषण
उत्तर:
(ब) उद्देश्यपूर्ण मिलावट
(iii) जंगली घास जिसके बीजों की मिलावट सरसों के बीजों के साथ की जाती है –
(अ) राई
(ब) सरसों
(स) आरजीमोन
(द) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(स) आरजीमोन
(iv) खाद्य पदार्थों में मिलावट की रोकथाम हेतु आवश्यक है –
(अ) ताजे व कम – से – कम प्रसंस्करित खाद्य खरीदें
(ब) शिक्षित एवं जागरूक उपभोक्ता
(स) निर्धारित मानक चिह्न देखकर खाद्य खरीदें
(द) ये सभी
उत्तर:
(ब) शिक्षित एवं जागरूक उपभोक्ता
(v) खाद्य पदार्थ मिलावट निषेध अधिनियम है –
(अ) FPO
(a) FSSAI
(स) PFA
(द) Agmark
उत्तर:
(अ) FPO
प्रश्न 2.
मिलावट किसे कहते हैं?
उत्तर:
मिलावट का अर्थ (Meaning of Adulteration):
जब खाद्य-पदार्थों में उनसे मिलता – जुलता कोई ऐसा घटिया किस्म का पदार्थ मिला दिया जाए जिससे उसकी गुणवत्ता तथा शुद्धता पर नकारात्मक प्रभाव पड़े तो इसे भोज्य पदार्थों में मिलावट कहते हैं। भोज्य पदार्थों में यह मिलावट तीन प्रकार से की जाती है –
- भोज्य पदार्थों को आकर्षक बनाने तथा रंग उभारने हेतु हानिकारक तत्वों को, उदाहरणार्थ मिठाइयों तथा मसालों का रंग उभारने हेतु उसमें रंग मिलाना।
- भोज्य पदार्थों में मिलावट के लिए उसमें सस्ते तथा घटिया किस्म के पदार्थ; जैसे- भोज्य पदार्थों की घटिया किस्म, रेत, कंकड़, चिप्स आदि मिला दिए जाते हैं। सरसों के तेल में आरजीमोन घास के बीजों का तेल मिलाकर इन पदार्थों की गुणवत्ता से समझौता किया जाता है; जिसका नुकसान उपभोक्ता को उठाना पड़ता है।
- भोज्य पदार्थों में से अमूल्य पोषक तत्वों को निकाल लेने से भी भोज्य पदार्थों की गुणवत्ता प्रभावित होती है, उदाहरणार्थ दूध में से वसा निकाल ली जाती है। लौंग एवं इलायची में से तेल निकाल लिया जाता है।
प्रश्न 3.
मिलावट कितने प्रकार की होती है? उदाहरण देते हुए समझाइए।
उत्तर:
खाद्य पदार्थों में मिलावट से आशय-खाद्य पदार्थों में सस्ता एवं घटिया किस्म का कोई भी मिलता-जुलता पदार्थ मिलाने या उसमें से कोई तत्व निकालने या फिर उसमें हानिकारक तत्व मिलाने से खाद्य पदार्थ की गुणवत्ता एवं शुद्धता में कमी आने को खाद्य पदार्थों में मिलावट कहते हैं। मिलावट के प्रकार (Types of adulteration)-मिलावट मुख्यतः दो प्रकार से की जाती है –
- उद्देश्यपूर्ण मिलावट (Intentional adulteration)
- आपातिक मिलावट (Incidental adulteration)।
1. उद्देश्यपूर्ण मिलावट (Intentional adulteration):
उद्देश्यपूर्ण मिलावट विक्रेता अधिक-से-अधिक धन कमाने के लिए करता है। इसके परिणामस्वरूप उपभोक्ता को अपने व्यय किए गए धन के अनुसार गुणवत्ता प्राप्त नहीं हो पाती है। इस प्रकार की मिलावट विक्रेता भोज्य पदार्थों में जानबूझकर सस्ते अथवा घटिया प्रकार के भोज्य पदार्थ मिलाकर अथवा भोज्य पदार्थों में से आवश्यक तथा उपयोगी अवयवों को निकालकर करता है।
उदाहरणार्थ अनाज, दलहन व तिलहन में कंकड़, पत्थर, चिप्स, रेत आदि मिला दी जाती है तथा दूध में से क्रीम निकाल ली जाती है। चाय की पत्ती में से शुद्ध चाय की पत्ती निकालकर प्रयोग की गई सूखी चाय पत्ती मिला देते हैं, लौंग तथा इलायची में से तेल निकाल लिया जाता है।
2. आपातिक मिलावट (Incidental/accidental adulteration):
आपतिक मिलावट जानबूझकर नहीं की जाती है, अपितु यह मिलावट अज्ञानतावश, लापरवाही, दुर्घटना तथा उपयुक्त सुविधाओं के अभावस्वरूप होती है। ऐसी मिलावट खाद्य पदार्थों के संग्रहण, प्रसंस्करण, स्थानान्तरण, डिब्बाबंदी, उगाते समय, काटते समय हो जाती है। इस प्रकार की मिलावट से विक्रेता को कोई लाभ नहीं होता किन्तु उपभोक्ता को आर्थिक रूप से हानि उठानी पड़ती है तथा आर्थिक हानि के साथ-साथ उसके स्वास्थ्य के लिए भी समस्या उत्पन्न हो जाती है।
प्रश्न 4.
खाद्य पदार्थों में हो रही मिलावट की रोकथाम किस प्रकार कर सकते हैं ? समझाइए।
उत्तर:
मिलावट का अर्थ – जब खाद्य पदार्थों में उनसे मिलता:
जुलता कोई ऐसा घटिया किस्म का पदार्थ मिला दिया जाए जिससे उसकी गुणवत्ता तथा शुद्धता पर नकारात्मक प्रभाव पड़े तो इसे भोज्य पदार्थों में मिलावट कहते हैं।
खाद्य पदार्थों में मिलावट की रोकथाम (Checks on adulteration in food grains):
खाद्य पदार्थों में मिलावट या तो जानबूझकर की जाती है अथवा अनजाने में लापरवाही से हो जाती है। इस मिलावट की रोकथाम हम निम्न प्रकार से कर सकते हैं –
1. परिष्कृत एवं प्रसंस्कृत भोज्य पदार्थों का निम्नतम प्रयोग (Least use of processed food):
खाद्य पदार्थों के परिष्करण तथा प्रसंस्करण के साथ-साथ उनमें मिलावट की संभावना में भी वृद्धि हो जाती है। अत: हमें यह प्रयास करना चाहिए कि जहाँ तक हो सके प्रसंस्कृत तथा परिष्कृत भोज्य पदार्थों के सेवन से बचें तथा साबुत अनाज, दालें, मसाले इत्यादि खरीदकर घर पर ही आटा तथा मसाले इत्यादि बनाएँ।
2. खाद्य पदार्थों की शुद्धता के प्रति सजगता (Awareness towards the purity of food items):
हमें खाद्य पदार्थों का क्रय तथा उपभोग करते समय उनकी शुद्धता के प्रति सजग रहना चाहिए। उदाहरणार्थ, टंकी या थैली का दूध लाने के स्थान पर स्वयं जाकर सामने निकाला हुआ दूध लाने का प्रयास करें।
3. ताजे भोज्य पदार्थों का अधिकाधिक सेवन (Maximum use of fresh food):
जहाँ तक संभव हो सके डिब्बाबंद तथा बासी भोज्य पदार्थों के सेवन से बचना चाहिए तथा ताजे भोज्य पदार्थों का अधिक – से – अधिक मात्रा में सेवन करना चाहिए।
4. निर्धारित मानक चिह्नों वाले खाद्य पदार्थों का क्रय (Purchase of food items only of standard marks):
आज के भाग – दौड़ वाले समय में तैयार भोज्य पदार्थों पर निर्भरता को कम करना बहुत कठिन है। भारत सरकार ने ऐसी स्थिति में खाद्य पदार्थों में मिलावट को रोकने के उद्देश्य से ‘खाद्य पदार्थ मिलावट निषेध अधिनियम (Prevention of Food Adulteration Act, 1954)’ का निर्माण किया है तथा भोज्य पदार्थ निरीक्षक (Food Inspectors) की नियुक्ति की है। इस अधिनियम में सरकार ने भोज्य पदार्थों के लिए ‘न्यूनतम गुणवत्ता मानक’ (Minimum quality standard) सुनिश्चित किए हैं, जिसके अन्तर्गत ISI, FPO, Agmark आदि मानक चिह्न प्रदान किये गए हैं। अत: इन मानक चिह्नों को देखकर ही भोज्य पदार्थ खरीदें।
प्रश्न 5.
मिलावटी भोज्य पदार्थ खाने के क्या दुष्प्रभाव होते हैं? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
मिलावटी भोज्य पदार्थ खाने के दुष्प्रभाव भोज्य पदार्थों में मिलावट दो प्रकार से की जाती है; प्रथम प्रकार से की गई मिलावट ऐसे सस्ते व घटिया अवयवों द्वारा की जाती है जिसका स्वास्थ्य पर कोई विशेष दुष्प्रभाव नहीं पड़ता। दूसरे प्रकार की मिलावट ऐसे हानिकारक अवयवों द्वारा की जाती है जिसका भयंकर दुष्परिणाम भुगतना पड़ता है। ऐसे हानिकारक पदार्थों तथा उनसे होने वाले दुष्परिणामों का विवरण निम्न प्रकार है –
1. एस्बेस्टॉस:
यह गेहूँ के आटे, मैदा, पनीर आदि में मिलाया जाता है तथा सॉफ्ट ड्रिंक को छानने में प्रयुक्त होता है। इसके प्रभाव से आहार – नाल का कैंसर होने की आशंका रहती है।
2. आरजीमोन का तेल:
आरजीमोन नामक जंगली घास के बीजों से यह तेल निकाला जाता है तथा महँगे तेलों; जैसे – मूंगफली का तेल, सरसों के तेल आदि में मिलाया जाता है। 1-3 माह तक इसका प्रयोग करने से एपिडेमिक ड्रॉप्सी नामक रोग हो जाता है। इस रोग में देहगुहा में पानी भर जाता है व सम्पूर्ण शरीर पर सूजन आ जाती है। यह रोग पाचन तंत्र की गड़बड़ी से आरम्भ होता है। त्वचा में चकत्ते पड़ जाते हैं, बुखार रहने लगता है। इससे नेत्र रोग ग्लूकोमा होने की संभावना रहती है, यकृत के आकार में वृद्धि हो जाती है, कैंसर तथा अल्प श्वास के कारण हृदय गति रुकने से मृत्यु तक हो सकती है।
3. खनिज तेल एवं पैराफिन तेल:
ऐसे अखाद्य खनिज तेल व पैराफिन तेल जो पेट्रोलियम शुद्धिकरण के समय निकलते हैं, को खाद्य तेलों में मिश्रित कर देते हैं। वसा में घुलनशील विटामिन (A, D, E, K) इन तेलों में घुलकर शरीर से बाहर निकल जाते हैं जिससे भोजन की पौष्टिकता कम होती है तथा ये कैंसर उत्पन्न करने वाले भी प्रमाणित हो चुके हैं।
4. खेसारी दाल:
यह दाल प्रतिकूल परिस्थितियों में न्यूनतम प्रयत्नों द्वारा अधिकतम उत्पादन देती है तथा मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, बिहार के लोगों का मुख्य भोजन है। इसमें एक जहरीला अमीनो अम्ल पाया जाता है जिसका उपभोग से पहले निष्कासन अति आवश्यक है। यदि इस दाल को लम्बे समय तक बिना उपचार के उपभोग किया जाए तो टाँगों में लकवा मार जाता है तथा व्यक्ति चलने-फिरने योग्य नहीं रह जाता है। इसी कारण से कुछ राज्य सरकारों ने इस दाल के उगाने एवं उपभोग पर पाबंदी लगा दी है।
5. तेलीय रसायन:
प्लास्टिक उद्योग में काम आने वाले तेलीय रसायन – आर्थोट्राइक्रिसाइल फॉस्फेट (TCP) को कभी-कभी सरसों के तेल में मिला देते हैं। यह तत्व वसा की उस परत को नुकसान पहुंचाता है, जो मस्तिष्क तथा मेरुदण्ड से निकलने वाली नाड़ियों की सुरक्षा करती है। इसके परिणामस्वरूप मस्तिष्क द्वारा होने वाला शरीर का पेशीय संतुलन गड़बड़ा जाता है, जिसका परिणाम मृत्यु भी हो सकती है।
6. कोलतार रंग:
यह रंग मिठाइयों को रंगने हेतु प्रयोग किया जाता है। कोलतार रंगों की तुलना में प्राकृतिक रंग बहुत महँगे होते हैं तथा बड़ी मात्रा में इनका प्रयोग खाद्य पदार्थों में करना पड़ता है। ये रंग मिठाइयों के साथ-साथ मसालों; जैसे-हल्दी, मिर्च तथा दालों को रंगने के लिए भी प्रयुक्त होते हैं। इस प्रकार के रंगों का अधिकतर प्रयोग निम्न खाद्य पदार्थों में किया जाता है –
रंग भोज्य पदार्थ
लाल रंग (रोडामाइन बी.) लाल मिर्च पाउडर
नीला रंग (नीली वी. आर. एस.) रंगीन मिठाई
हरा रंग (मैलाचाइट हरा) रंगीन मिठाई
औरामाइन चीनी चढ़ी सौंफ तथा सुपारी
नारंगी रंग (नारंगी रंग II) खेसारी रंग
पीला रंग (मैटानिल यलो) आइस कैंडी, बर्फ, दाल, हल्दी
उपरोक्त रंगों का प्रभाव हमारे यकृत, गुर्दे, तिल्ली, प्रजनन अंग, फेफड़े पर पड़ता है तथा इनमें विकार उत्पन्न हो जाता है। इसके अतिरिक्त चमड़ी, अस्थि, रक्त, स्तन कैंसर आदि की संभावना बढ़ जाती है। रक्तहीनता, गर्भपात, मानसिक अवरुद्धता, दृष्टिहीनता भी हो सकती है तथा अंतिम परिणाम मृत्यु भी हो सकती है।
RBSE Class 12 Home Science Chapter 19 अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
RBSE Class 12 Home Science Chapter 19 वस्तुनिष्ठ प्रश्न
प्रश्न 1.
प्रथम केन्द्रीय खाद्यान्न मिलावट प्रतिबन्ध अधिनियम कब पारित हुआ?
(अ) 1954 ई. में
(ब) 1958 ई. में
(स) 1964 ई. में
(द) 1974 ई. में
उत्तर:
(अ) 1954 ई. में
प्रश्न 2.
आपातिक मिलावट होती है –
(अ) विक्रेता द्वारा
(ब) अज्ञानतावश
(स) दोनों प्रकार से
(द) किसी के द्वारा नहीं
उत्तर:
(ब) अज्ञानतावश
प्रश्न 3.
मूंग दाल में मैला चाइट हरा (हरा रंग) मिलाने से किस रोग की संभावना रहती है?
(अ) यकृत रोग
(ब) कैंसर
(स) पेचिश
(द) क्षय रोग
उत्तर:
(ब) कैंसर
प्रश्न 4.
आरजीमोन के बीच से उत्पन्न होने वाला रोग है –
(अ) हृदय रोग
(ब) एपिडेपिक ड्रॉप्सी
(स) लकवा
(द) पेचिश
उत्तर:
(ब) एपिडेपिक ड्रॉप्सी
प्रश्न 5.
टाँगों का लकवा अरहर की दाल में किसकी मिलावट से होता है?
(अ) मूंगदाल की
(ब) खेसारी दाल की
(स) आरजीमोन की
(द) कास्टिक सोडा की
उत्तर:
(ब) खेसारी दाल की
प्रश्न 6.
मिलावट से रोकथाम का उपाय है –
(अ) ताजे खाद्य पदार्थ क्रय करना
(ब) मानक चिह्न देखकर खाद्य पदार्थ खरीदना
(स) कम से कम परिष्कृत एवं प्रसंस्करित खाद्य पदार्थ खरीदना
(द) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(द) उपरोक्त सभी
रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए –
1. हवा एवं पानी के बाद……….हमारी तीसरी एवं महत्त्वपूर्ण आवश्यकता है।
2. खाद्य पदार्थों में सस्ता एवं घटिया किस्म का कोई भी मिला – जुला पदार्थ मिलाने या कोई भी तत्व निकालने को………कहते हैं।
3. ……….दाल के लम्बे समय तक अधिक मात्रा में बिना उपचार किए उपयोग करने से टाँगों में लकवा मार जाता है।
4. आपातिक मिलावट मुख्यत: …………अनभिज्ञता के कारण होती है।
5. फल व सब्जियों को…………एवं खाने से पूर्व अच्छी तरह धो लेना चाहिए।
6. खाद्य पदार्थ निर्धारित…………देखकर ही खरीदने चाहिए।
उत्तर:
1. भोजन
2. मिलावट
3. खेसारी
4. अज्ञानतावश
5. पकाने
6. मानक।
RBSE Class 12 Home Science Chapter 19 अति लघूत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
मिलावटी अवयव किसे कहते हैं?
उत्तर:
भोज्य पदार्थों में मिलाये जाने वाले अन्य एवं खराब भोज्य पदार्थ तथा बाहरी अवयव; जैसे-कंकड़, पत्थर, तिनके आदि को मिलावटी अवयव कहते हैं।
प्रश्न 2.
भोजन संदूषण किसे कहते हैं?
उत्तर:
किसी – न – किसी प्रकार की भूल या लापरवाही के कारण भोज्य पदार्थों में मिलावट हो जाना भोजन संदूषण कहलाता है।
प्रश्न 3.
भोजन संदूषण कितने प्रकार से हो सकता
उत्तर:
भोजन संदूषण निम्न तीन प्रकार से होता है –
- धात्विक मिलावट द्वारा
- कीटाणु या फफूंद द्वारा
- कीड़ों तथा कीटनाशक द्वारा।
प्रश्न 4.
दालों में किसकी मिलावट की जाती है?
उत्तर:
दालों में खेसारी दाल की मिलावट कर दी जाती है।
प्रश्न 5.
लम्बे समय तक बिना उपचार किए खेसारी दाल का प्रयोग करने से क्या हानि है?
उत्तर:
टाँगों का लकवा हो सकता है।
प्रश्न 6.
किन पदार्थों में एस्बेस्टॉस की मिलावट की जाती है?
उत्तर:
गेहूँ के आटे, मैदा, पनीर आदि में एस्बेस्टॉस की मिलावट की जाती है।
प्रश्न 7.
सरसों के तेल में किस पौधे के बीजों से निकाले गए तेल की मिलावट की जाती है? तथा इसके सेवन से किस रोग के होने सम्भवना रहती है?
उत्तर:
आरजीमोन के बीजों से निकले तेल की। इससे एपिडेमिक ड्रॉप्सी नामक रोग हो जाता है।।
प्रश्न 8.
शुद्ध घी में मिलावट हेतु क्या मिश्रित करते
उत्तर:
वनस्पति घी तथा जानवरों की चर्बी।
प्रश्न 9.
हल्दी एवं काली मिर्च में किन पदार्थों की मिलावट की जाती है ?
उत्तर:
हल्दी में मेटानिल यलो (पीला रंग) तथा काली मिर्च में पपीते के बीजों की।
प्रश्न 10.
मिलावट को रोकने के लिए खाद्य पदार्थ मिलावट निषेध अधिनियम कब बना?
उत्तर:
सन् 1954 ई. में।
प्रश्न 11.
F.S.S.A.I. का मुख्य उद्देश्य क्या है?
उत्तर:
खाद्य पदार्थों हेतु वैज्ञानिक तथ्यों के आधार पर मानकों का निर्धारण करना तथा उनकी सुरक्षा व गुणवत्ता निश्चित करना प्रमुख उद्देश्य है।
प्रश्न 12.
उद्देश्य पूर्ण मिलावट क्या है?
उत्तर:
यह मिलावट विक्रेता स्वयं अधिक-से-अधिक लाभ कमाने के लिए करता है। इससे उपभोक्ता को धन का उचित मूल्य नहीं मिला है।
प्रश्न 13.
आपातिक मिलावट अवयव के दो उदाहरण लिखिए।
उत्तर:
- कीटनाशक अवशेष
- सीसा।
प्रश्न 14.
बाजरे में एरगोट फफूंदी से क्या हानि होती है?
उत्तर:
बाजरे में एरगोट फफूंदी के मिले होने से विषाक्ता हो जाती है, जिससे बाजरा स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो जाता है।
प्रश्न 15.
खेसारी दाल में पाये जाने वाले अम्ल का नाम लिखिए।
उत्तर:
खेसारी दाल में एक विषैला अमीनो अम्ल पाया जाता है।
प्रश्न 16.
एपिडेमिक ड्रॉप्सी रोग किस कारण से होता है?
उत्तर:
एपिडेमिक रोग सरसों के बीजों में आरजीमोन के बीच की मिलावटयुक्त तेल के उपयोग करने से होता है।
RBSE Class 12 Home Science Chapter 19 लघूत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
सामान्यतः किन-किन पदार्थों में मिलावट पायी जाती है?
उत्तर:
- दूध एवं दूध से बने भोज्य पदार्थों में।
- अनाज, दलहन, तिलहन तथा इनके आटे एवं दलिया में।
- मिठाइयों एवं मिठास देने वाले पदार्थों में।
- मसालों में।
- घी एवं तेलों में।
- पेय पदार्थों में।
प्रश्न 2.
सरसों तथा अन्य महँगे तेलों में मिलाए जाने वाले आरजीमोन के तेल के दुष्परिणामों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
आरजीमोन एक जंगली घास है। इस घास के बीजों की मिलावट सरसों के बीजों में तथा इनसे प्राप्त तेल की मिलावट महँगे तेलों में कर दी जाती है। 1 – 3 माह तक आरजीमोन तेल की मिलावट युक्त तेल का उपभोग करने से मनुष्य में एपिडेमिक ड्रॉप्सी नामक रोग हो जाता है, जिसके परिणामस्वरूप देहगुहा में पानी एकत्रित हो जाता है तथा संपूर्ण शरीर में सूजन हो जाती है। इस रोग का आरम्भ पाचन तंत्र की गड़बड़ी से होता है। त्वचा पर चकत्ते पड़ जाते हैं, नाड़ी की गति धीमी हो जाती है तथा ज्वर रहने लगता है। रोग बढ़ने की स्थिति में कैंसर तथा अल्प श्वसन (Respiratory distress) की समस्या पैदा हो जाती है तथा अन्त में हृदय गति रुकने से मृत्यु भी हो जाती है।
प्रश्न 3.
निम्नलिखित में मिलावट किये जाने वाले एक – एक पदार्थ का नाम लिखिए अरहर दाल, दूध पाउडर, घी, जीरा।
उत्तर:
- अरहर दाल – खेसारी दाल
- दूध पाउडर – स्टार्च
- घी – चर्बी
- जीरा – जंगली घास के बीज़।
प्रश्न 4.
खाद्य पदार्थ में आपातिक मिलावट के क्या कारण हो सकते हैं?
उत्तर:
खाद्य पदार्थों में आपातिक मिलावट के कारण –
- फसल का संग्रहण कच्चे गोदामों में करने से कंकड़, पत्थर, मिट्टी आदि मिल जाने से।
- अधिक दूध की प्राप्ति हेतु जानवरों को दी गई दवाओं के अंश का दूध में मिल जाने से।
- वनस्पति खाद्य उगाते समय कीटनाशकों का प्रयोग करना।
- डिब्बाबंदी के दौरान सूक्ष्म बैक्टीरिया का छूट जाना।
- प्रसंस्करण के समय उपयुक्त स्वच्छ व स्वास्थ्यपूर्ण वातावरण का अभाव होने से।
- स्थानांतरण के समय टक्कर आदि की वजह से डिब्बों में छेद हो जाने, सील टूटने आदि से जीवाणुओं का प्रवेश हो जाने से।
- भोज्य पदार्थों को सही प्रकार से ढक्कर न रखने से।
इसके अतिरिक्त भी भोज्य पदार्थों को उगाने, काटने, प्रसंस्करण, पैकिंग, संग्रहण, परिवहन, वितरण एवं उपभोग के दौरान भी विविध प्रकार से आपातिक मिलावट हो सकती है जोकि किसी-न-किसी प्रकार की भूल, लापरवाही या दुर्घटना के परिणामस्वरूप होती है। ऐसी मिलावट को मिलावट न कहकर भोजन संदूषण (Food contamination) कहते हैं। यह निम्न कारणों से होता है –
- जीवाणु संदूषण या मिलावट (Bacterial contamination)
- कीट तथा कीटनाशक संदूषण या मिलावट (Insects & insecticide contamination)
- धात्विक संदूषण या मिलावट (Metallic contamination)।
RBSE Class 12 Home Science Chapter 19 निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
भोज्य पदार्थों में मिलावटी अवयव एवं उनके दुष्प्रभावों की एक तालिका बनाइये।
उत्तर:
भोज्य पदार्थों में मिलावटी अवयव एवं उसके दुष्प्रभाव की तालिका
RBSE Class 12 Home Science Chapter 19 प्रयोगात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
विभिन्न भोज्य पदार्थों में मिली मिलावटी वस्तुओं तथा उनके परीक्षण की तालिका बनाइए।
उत्तर:
भोज्य पदार्थों में मिश्रित मिलावटी वस्तुएँ तथा उनसे होने वाली हानियों का विवरण निम्नलिखित तालिका से स्पष्ट किया जा सकता है –भोज्य पदार्थों में मिलावट की जाँच
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